
देश में इन दिनों संसद और न्यायपालिका की भूमिका को लेकर बहस तेज़ है। इसी बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक अहम बयान देते हुए स्पष्ट किया कि लोकतंत्र का असली आधार निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं और संसद सर्वोच्च संस्था है। उन्होंने यह बात दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही।
धनखड़ ने कहा, “लोकतंत्र जनता के लिए है, और इसका सेफगार्ड भी जनता के माध्यम से निर्वाचित प्रतिनिधि ही हैं। संविधान में संसद से ऊपर किसी भी प्राधिकारी की कल्पना नहीं की गई है। संसद इस देश के हर नागरिक जितनी ही सर्वोच्च है।”
“संसद सर्वोच्च, कोई अन्य प्राधिकरण नहीं”
उपराष्ट्रपति ने ज़ोर देकर कहा कि किसी को इस बात पर भ्रम नहीं होना चाहिए कि संसद से ऊपर कोई और संस्था हो सकती है। उन्होंने कहा, “संसद ही सर्वोच्च है। निर्वाचित प्रतिनिधि ही संविधान के ‘Ultimate Masters’ हैं।”
आपातकाल: लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय
धनखड़ ने 1975 में लगाए गए आपातकाल को लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला दौर बताया। उन्होंने कहा कि उस समय देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी लोकतंत्र के मूल अधिकारों की रक्षा नहीं की और नौ उच्च न्यायालयों के फ़ैसलों को दरकिनार कर दिया।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब 1949 में संविधान को अपनाया गया था, तो आज हम संविधान दिवस के साथ-साथ “संविधान हत्या दिवस” क्यों मनाने को मजबूर हैं?
“नागरिक सर्वोच्च, जागरूकता है लोकतंत्र की ताकत”
उपराष्ट्रपति ने लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका को भी सर्वोच्च बताते हुए कहा, “हर नागरिक की लोकतंत्र में अहम भागीदारी होती है। लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है, जब नागरिक जागरूक हों और सकारात्मक योगदान दें।”
धनखड़ ने हालिया कुछ विचारों की आलोचना की, जिसमें कहा गया था कि संवैधानिक पदाधिकारी केवल औपचारिक या सजावटी भूमिका में होते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि “देश में हर पद, हर व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है – चाहे वह संवैधानिक अधिकारी हो या सामान्य नागरिक।”
“लोकतंत्र में संवाद जरूरी, चुप्पी खतरनाक”
धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र संवाद से चलता है, बाधा या चुप्पी इसे कमजोर करती है। उन्होंने कहा, “सोचने वाले नागरिकों को आगे आकर अपनी विरासत और संस्थाओं की रक्षा करनी चाहिए। हम संस्थानों को बर्बाद करने या लोगों को कलंकित करने की अनुमति नहीं दे सकते।”
उन्होंने वर्तमान में सार्वजनिक संपत्तियों के नष्ट किए जाने और कानून व्यवस्था बाधित करने की घटनाओं को लेकर भी चिंता जताई।
“गर्व से कहिए – हम भारतीय हैं”
कार्यक्रम के अंत में उपराष्ट्रपति ने भारतीयता पर गर्व करने की अपील की और कहा कि लोकतंत्र को मज़बूत बनाए रखने के लिए हमें सामाजिक अनुशासन और संवादशीलता बनाए रखनी होगी।