
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (28 नवंबर 2024) को उत्तर प्रदेश पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि पुलिस अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रही है और उसे अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुईयां की बेंच ने यह भी चेतावनी दी कि यदि याचिकाकर्ता अनुराग दुबे को किसी भी तरह से परेशान किया गया या छुआ गया, तो कोर्ट ऐसा कठोर आदेश पारित करेगा, जिसे पुलिस अधिकारी जीवनभर याद रखेंगे।
यह मामला अनुराग दुबे से जुड़ा है, जिन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया था, लेकिन वे पेश नहीं हुए। उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी अनुपस्थिति पर सवाल उठाए, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हो सकता है, याचिकाकर्ता को यह डर हो कि जांच के दौरान उन पर एक और मामला दर्ज कर दिया जाएगा।
“यूपी पुलिस खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर रही है”
सुनवाई के दौरान बेंच ने यूपी पुलिस की कार्रवाई पर नाराजगी जताते हुए कहा,
“हर बार आप नई एफआईआर लेकर आ जाते हैं। यह सिविल विवाद है या आपराधिक? आपने पंजीकृत विक्रय पत्र के बावजूद जमीन हड़पने का आरोप लगाया है। यह दर्शाता है कि यूपी पुलिस एक खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर रही है और अपनी पावर का आनंद ले रही है। अगर आप यह सोचते हैं कि आपके पास पुलिस और सिविल कोर्ट दोनों की शक्तियां हैं, तो आप गलतफहमी में हैं।”
“डीजीपी को बता दें, आदेश ऐसा होगा जो जिंदगीभर याद रहेगा”
जस्टिस सूर्यकांत ने यूपी पुलिस के वकील से कहा,
“आप अपने डीजीपी को बता दीजिए कि अगर अनुराग दुबे को छुआ भी गया तो ऐसा आदेश पास करेंगे कि वह जिंदगीभर याद रहेगा।”
पिछले आदेश की अनदेखी पर कोर्ट की नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के बावजूद अनुराग दुबे को नोटिस भेजा गया था, लेकिन वह पूछताछ में पेश नहीं हुए। इस पर यूपी सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट राणा मुखर्जी ने बताया कि नोटिस भेजा गया था, लेकिन दुबे ने एफिडेविट के जरिए जवाब दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उन्हें कोई स्पष्ट सूचना नहीं मिली है, जबकि उन्होंने पुलिस को अपना मोबाइल नंबर भी दिया था।
इस पर कोर्ट ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया कि डिजिटल माध्यम से याचिकाकर्ता को सूचित करें।
“अब सब डिजिटल हो गया है, लेटर भेजने की बजाय मोबाइल नंबर पर संदेश भेजा जाना चाहिए।”
गिरफ्तारी पर लगी रोक, पुलिस को कोर्ट से अनुमति लेने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पुलिस, याचिकाकर्ता को जांच में शामिल होने देगी और बिना अदालत की अनुमति के उन्हें गिरफ्तार नहीं करेगी। अगर किसी नए मामले में गिरफ्तारी आवश्यक हो, तो पहले कोर्ट को इसकी जानकारी दी जाए।
जस्टिस सूर्यकांत ने चेतावनी दी,
“अगर पुलिस ने बगैर अदालत को बताए गिरफ्तारी की, तो संबंधित अधिकारियों को न केवल सस्पेंड किया जाएगा बल्कि अन्य कड़ी कार्रवाई भी होगी।”
सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त चेतावनी के बाद यूपी पुलिस को अब कानून के दायरे में रहकर जांच करनी होगी, अन्यथा उन्हें न्यायिक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।