
भारत के नागरिकों को अमानवीय तरीके से हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़कर अमृतसर लाए जाने की घटना ने भारतीय संप्रभुता और राष्ट्र की गरिमा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह पहली बार नहीं है जब विदेशी ताकतों ने भारत के नागरिकों के साथ इस तरह का व्यवहार किया हो, लेकिन सवाल यह है कि भारत सरकार ने अपने नागरिकों की रक्षा के लिए क्या किया?
पूर्व की सरकारों में भी अपमानजनक घटनाएँ
अगर इतिहास में झांकें, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि मौजूदा सरकार से पहले भी अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भारतीय नागरिकों या भारत के नेताओं के साथ अपमानजनक व्यवहार किया है। लेकिन अंतर यह है कि तब की सरकारें इस तरह चुप नहीं बैठी थीं।
- जॉर्ज फर्नांडिस की अमरीका में तलाशी (2002)
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडिस को अमेरिका की यात्रा के दौरान अपमानजनक तरीके से जूते-मोजे उतरवाकर तलाशी ली गई थी। यह भारत के रक्षा मंत्री का अपमान था, लेकिन वाजपेयी सरकार ने इस पर कोई ठोस आपत्ति नहीं जताई। अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंधों के नाम पर यह अपमान सह लिया गया।
- अब्दुल कलाम की तलाशी (2009)
भारत के पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को 2009 में अमेरिका के जॉन एफ. कैनेडी एयरपोर्ट पर अपमानजनक तरीके से रोका गया और उनकी तलाशी ली गई। यह घटना तब हुई जब वे राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने के बाद एक आम नागरिक के रूप में यात्रा कर रहे थे। इस पर भारत सरकार ने विरोध दर्ज कराया, लेकिन अमेरिका ने इसे “प्रोटोकॉल” का हवाला देकर टाल दिया।
- देवयानी खोब्रागड़े मामला (2013)
2013 में अमेरिका में भारतीय राजनयिक देवयानी खोब्रागड़े को वीज़ा धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें सार्वजनिक रूप से हथकड़ियाँ पहनाई गईं और सामान्य अपराधियों की तरह तलाशी ली गई। यह भारत के राजनयिकों के खिलाफ अमेरिका की कार्रवाई थी, लेकिन मनमोहन सिंह सरकार ने इस पर कड़ा विरोध जताया। अमेरिका को माफी मांगनी पड़ी, और अंततः देवयानी को राजनयिक छूट देकर वापस भेजा गया।
अब की सरकार की चुप्पी क्यों?
जहाँ पहले की सरकारों ने विरोध दर्ज कराया था, वहीं नरेंद्र मोदी सरकार की प्रतिक्रिया बेहद निराशाजनक रही। विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिकी कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि “हथकड़ियाँ लगाना अमेरिका की नीति है।” इससे यह स्पष्ट होता है कि मौजूदा सरकार अमेरिका के आगे पूरी तरह झुक चुकी है।

इससे पहले मेक्सिको और कोलंबिया जैसे छोटे देश अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा के लिए अमेरिकी कार्रवाई का विरोध कर चुके हैं, लेकिन भारत, जो कभी गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व करता था, अब अमेरिका के आगे नतमस्तक हो गया है।
क्या भारत के नागरिक दोयम दर्जे के हैं?
अमेरिका ने जिन भारतीयों को डिपोर्ट किया, वे अपराधी नहीं थे। वे बस एक बेहतर जीवन की तलाश में गए थे। लेकिन उन्हें जिस तरह से सैनिक विमान में जंजीरों में बांधकर लाया गया, वह दर्शाता है कि भारत की विदेश नीति अब आत्मसम्मान से अधिक बड़े देशों को खुश करने में लगी हुई है।
यह घटना केवल 104 भारतीयों के अपमान की नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता और गरिमा के अपमान की है। यह दिखाता है कि किस तरह से भारत की सरकार अमेरिका के सामने झुक चुकी है। जब तक भारत अपनी विदेश नीति को आत्मसम्मान के साथ नहीं अपनाएगा, तब तक ऐसी घटनाएँ बार-बार होती रहेंगी। पूर्व की सरकारों की तुलना में मोदी सरकार की चुप्पी यह साबित करती है कि “अबकी बार ट्रम्प सरकार” का नारा केवल दिखावा नहीं, बल्कि भारतीय संप्रभुता के गिरवी रखने की दिशा में एक बड़ा कदम था।