Wednesday, July 2, 2025
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सुप्रीम कोर्ट की चिंता: ‘वसुधैव कुटुंबकम’ मानने वाले भारत में परिवार की अवधारणा क्यों खत्म हो रही है?

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में परिवार व्यवस्था के क्षरण पर गहरी चिंता जताई है। न्यायमूर्ति पंकज मिथल और एस. वी. एन. भट्टी की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भारत में लोग भले ही ‘वसुधैव कुटुंबकम’ यानी “संपूर्ण विश्व एक परिवार है” के सिद्धांत में विश्वास करते हों, लेकिन वे अपने ही परिवार के भीतर एकता बनाए रखने में असफल हो रहे हैं। अदालत ने कहा कि परिवार की मूल अवधारणा धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है और समाज ‘एक व्यक्ति, एक परिवार’ की ओर बढ़ रहा है।

क्या था मामला?

यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक महिला ने अपने बड़े बेटे को घर से बेदखल करने की याचिका दायर की थी।

मामले में रिकॉर्ड के अनुसार, कल्लू मल और उनकी पत्नी समतोला देवी के तीन बेटे और दो बेटियां थीं। कल्लू मल का निधन हो चुका है। माता-पिता का अपने बेटों के साथ अच्छा संबंध नहीं था। 2014 में, कल्लू मल ने एसडीएम से शिकायत कर आरोप लगाया था कि उनका बड़ा बेटा उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है।

2017 में, उन्होंने सुल्तानपुर की कुटुंब अदालत में भरण-पोषण का मुकदमा दायर किया, जिसमें अदालत ने आदेश दिया कि दोनों बेटों को मिलकर माता-पिता को हर महीने 4,000 रुपये देने होंगे।

कल्लू मल ने दावा किया कि उनका मकान उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति है, जिसमें नीचे की दुकानें भी शामिल हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि उनका बड़ा बेटा उनकी दैनिक और चिकित्सा आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखता था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि—
🔹 पिता को संपत्ति का एकमात्र मालिक नहीं माना जा सकता, क्योंकि बेटे का भी उसमें अधिकार है।
🔹 बेटे को घर से बेदखल करने का कठोर आदेश देने की जरूरत नहीं थी।
🔹 वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत भरण-पोषण का आदेश देकर समस्या का समाधान किया जा सकता है।

परिवारों में बढ़ती दूरियां, समाज के लिए चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को भारतीय समाज में परिवार की बिखरती संरचना का उदाहरण बताया। कोर्ट ने कहा कि भारत में लोग ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की बात तो करते हैं, लेकिन अपने ही घर में परिवार के सदस्यों के साथ रहना मुश्किल हो गया है।

अदालत की यह टिप्पणी समाज के बदलते मूल्यों और संयुक्त परिवार प्रणाली के टूटने की ओर इशारा करती है। कोर्ट का कहना है कि परिवार व्यवस्था के कमजोर होने से सामाजिक तानाबाना भी प्रभावित हो रहा है।

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