
देश के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्र आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने पाया कि साल 2021 में 13,000 छात्रों ने आत्महत्या की, जो उसी वर्ष आत्महत्या करने वाले किसानों (10,281) की संख्या से भी अधिक थी। हालिया सुनवाई के दौरान अदालत ने एक 10-सदस्यीय राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया है, जो छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य, जातिगत भेदभाव, अकादमिक दबाव, यौन उत्पीड़न और अन्य सामाजिक कारकों की गहराई से जांच करेगी।
कैसे आया मामला सुप्रीम कोर्ट तक?
सुप्रीम कोर्ट में चल रहा यह मामला “अमित कुमार बनाम भारत सरकार” के नाम से दर्ज है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ इसपर सुनवाई कर रही है। मामला तब सुर्खियों में आया जब IIT दिल्ली में पढ़ रहे दो छात्रों, आयुष आश्ना और अनिल कुमार, की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई।
- आयुष आश्ना, जो बीटेक छात्र थे, जुलाई 2023 में अपने हॉस्टल में मृत पाए गए।
- 1 सितंबर 2023 को 21 वर्षीय अनिल कुमार, जो उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से थे, अपने कमरे में मृत मिले।
दोनों छात्रों के परिवारों ने इसे आत्महत्या नहीं, बल्कि जातिगत भेदभाव और संस्थान की लापरवाही के कारण हुई हत्या बताया। हालांकि, दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट में इसे आत्महत्या बताया गया, और दिल्ली हाईकोर्ट ने मामला बंद कर दिया। इसके बाद परिवारों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसके बाद अब नए सिरे से जांच के आदेश दिए गए हैं।
छात्र आत्महत्याओं पर सुप्रीम कोर्ट के कड़े सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि छात्र आत्महत्याओं के मामले सिर्फ IITs तक सीमित नहीं हैं। अदालत ने कई चौंकाने वाले घटनाक्रम गिनवाए—
- 18 फरवरी 2024: केरल के वायनाड के एक कॉलेज में छात्र हॉस्टल के बाथरूम में मृत पाया गया।
- 19 मार्च 2025: गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्र की संदिग्ध मौत।
- 25 फरवरी 2025: IIT पटना के एक छात्र ने सातवीं मंजिल से कूदकर जान दी।
- 15 फरवरी 2025: भुवनेश्वर के कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का बीटेक छात्र मृत मिला।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन लगातार हो रही मौतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
10 सदस्यीय टास्क फोर्स करेगी आत्महत्याओं की विस्तृत जांच
सुप्रीम कोर्ट ने 10 सदस्यीय टास्क फोर्स गठित करते हुए चार महीने में अंतरिम रिपोर्ट और आठ महीने में अंतिम रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। टास्क फोर्स को इन संभावित कारणों की जांच करने का आदेश दिया गया है—
✅ रैगिंग और शोषण
✅ जातिगत भेदभाव
✅ यौन उत्पीड़न
✅ अकादमिक दबाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं
✅ आर्थिक परेशानियां
✅ धार्मिक और राजनीतिक विचारों के कारण भेदभाव
✅ संस्थागत लापरवाही और प्रशासनिक निष्क्रियता
टास्क फोर्स छात्र सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य सुधार, और कानूनी बदलावों पर भी सिफारिशें देगी।
सुप्रीम कोर्ट का संदेश: अब चुप्पी नहीं, एक्शन जरूरी!
अदालत ने साफ कहा कि यह समस्या केवल छात्रों और उनके परिवारों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। न्यायपालिका ने सरकार, विश्वविद्यालयों और समाज से संवेदनशील और प्रभावी कदम उठाने की अपील की है।
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