नई दिल्ली / जम्मू-कश्मीर — देश के उत्तरी हिस्सों में खराब मौसम और विनाशकारी बाढ़ के मद्देनजर न्यायपालिका ने प्रभावितों के पक्ष में एकजुटता दिखाई है। प्रधानमंत्री बाढ़ राहत कोष में शीर्ष अदालत के सभी जजों ने स्वैच्छिक रूप से 25-25 हजार रुपये प्रति जज का योगदान देने की घोषणा की है, जबकि जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट ने सीधे तौर पर 54.40 लाख रुपये की राशि मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा कराई है।
न्यायपालिका की सहानुभूति व त्वरित पहल
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश सहित सभी जजों का यह सहयोग मौजूदा आपदा की गंभीरता के प्रति न्यायपालिका की मानवीय संवेदना और देश सेवा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। शीर्ष अदालत के जजों ने प्रभावितों के प्रति अपनी गहरी संवेदना भी व्यक्त की है और आवश्यकता पड़ने पर आगे भी सहयोग देने का आश्वासन दिया है।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का राहत योगदान और व्यवस्था
जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट के जजों और न्यायिक कर्मचारियों द्वारा दिये गये 54.40 लाख रुपये का औपचारिक चेक रजिस्ट्रार जनरल (अधिकरिक) एम. के. शर्मा ने मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला को सौंपा। हाईकोर्ट ने पहले भी प्रभावितों के पुनर्वास व राहत कार्यों के लिये स्वैच्छिक योगदान का आह्वान जारी किया था—जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से 20-20 हजार, जिला जजों से 10-10 हजार और सिविल जजों से 5-5 हजार रुपये का अनुरोध शामिल था। साथ ही राजपत्रित अधिकारियों व स्टाफ से भी निर्धारित योगदान मांगा गया था।
हालात और प्रशासनिक प्रतिक्रिया
लगातार बारिश व तेज बाढ़ ने जम्मू-कश्मीर समेत उत्तर भारत के कई हिस्सों में व्यापक तबाही मचा दी है — सैकड़ों परिवार विस्थापित हुए हैं और संपत्ति व आजीविका को भारी क्षति पहुँची है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रभावित हिमाचल और पंजाब का दौरा कर स्थिति का निरिक्षण किया था, और राहत तथा पुनर्निर्माण में केंद्रीय समर्थन के निर्देश दिए गए हैं। ऐसे संवेदनशील समय में न्यायपालिका व प्रशासनिक संस्थाओं की यह एकजुटता राहत व पुनर्वास कार्यों को बल देगी।
संदेश — एकता और मानवीय समर्थन की जरूरत
न्यायालयों के इस सहयोग से स्पष्ट रूप से यह संदेश गया है कि आपदा के समय केवल सरकारी प्रयास ही पर्याप्त नहीं; समाज के हर वर्ग, संस्थान और व्यक्ति को आगे आकर साझा जिम्मेदारी निभानी होगी। प्रभावित परिवारों के शीघ्र पुनर्वास और इलाके की मूलभूत सुविधाओं की बहाली के लिए व्यापक और पारदर्शी राहत व्यवस्था की आवश्यकता है।