पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले NDA और महागठबंधन दोनों गठबंधनों के भीतर सीट बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है। जहाँ महागठबंधन में सीटों पर अब तक सहमति नहीं बन पाई है, वहीं NDA में बंटवारा तय होने के बावजूद असंतोष उभर आया है।
उपेंद्र कुशवाहा को कम सीटें मिलने से नाराज बताया जा रहा है, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नाराजगी का कारण है तारापुर सीट — जहां से बीजेपी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी को टिकट दिया है।
नीतीश कुमार reportedly इस फैसले से असहमत थे, लेकिन बीजेपी ने उनकी आपत्ति को दरकिनार करते हुए सम्राट को मैदान में उतार दिया।
घटनाक्रम तब और दिलचस्प हो गया जब मंगलवार को उम्मीदवारों की घोषणा के तुरंत बाद जेडीयू ने LJP (चिराग गुट) के हिस्से में गई चार सीटों—एकमा, गायघाट, राजगीर और सोनबरसा—पर अपने उम्मीदवार उतार दिए।
नीतीश का पलटवार: LJP की सीटों पर JDU ने दिए उम्मीदवार
गायघाट (मुजफ्फरपुर):
2020 में LJP की मौजूदगी ने यहां JDU की हार में अहम भूमिका निभाई थी।
अब JDU ने LJP सांसद वीणा देवी की बेटी कोमल सिंह को उम्मीदवार बनाया है। दिलचस्प बात यह है कि 2020 में यही कोमल सिंह LJP टिकट पर चुनाव लड़ी थीं।
राजगीर (नालंदा):
यह सीट बीजेपी की मजबूत गढ़ रही है। 9 बार बीजेपी जीत चुकी है, जबकि JDU ने दो बार।
2020 में JDU के कौशल किशोर ने यहां कांग्रेस प्रत्याशी को हराया था।
इस बार फिर कौशल किशोर को टिकट देकर नीतीश ने LJP के प्रभाव को चुनौती दी है।
सोनबरसा (सहरसा):
यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है और 2010 से JDU की मजबूत पकड़ में रही है।
रत्नेश सदा ने लगातार तीन चुनाव (2010, 2015, 2020) जीते हैं।
JDU ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है।
एकमा (सारण):
यह सीट JDU के लिए 2020 में दर्द साबित हुई थी।
RJD के श्रीकांत यादव ने JDU की सीता देवी को करीब 14,000 वोटों से हराया था।
LJP के उम्मीदवार कामेश्वर सिंह ने तीसरा स्थान पाया था लेकिन वोट विभाजन से JDU को नुकसान हुआ था।
राजनीतिक संकेत स्पष्ट हैं
नीतीश कुमार का कदम इस बात का संकेत है कि JDU और LJP (चिराग गुट) के बीच पुराने घाव अब भी ताज़ा हैं।
2020 में LJP ने JDU को नुकसान पहुंचाकर बीजेपी को अप्रत्यक्ष लाभ दिया था, और अब नीतीश उन्हीं सीटों पर सीधी जवाबी रणनीति के साथ उतरे हैं।
दूसरी ओर, NDA के भीतर यह टकराव चुनावी एकता पर सवाल खड़े कर रहा है, जबकि महागठबंधन में सीट बंटवारे पर अब तक कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई है।
आने वाले दिनों में यह खींचतान बिहार चुनाव के समीकरणों को गहराई से प्रभावित कर सकती है।