
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का संभल दौरा पुलिस की रोक के बावजूद सुर्खियों में आ गया। बुधवार को जब वे पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए निकले, तो गाजीपुर बॉर्डर पर ही उन्हें रोक दिया गया। राहुल ने संविधान का हवाला देते हुए यूपी पुलिस से चार लोगों के साथ जाने की इजाजत मांगी, लेकिन उनकी यह मांग भी खारिज कर दी गई। हालांकि, राहुल बेशक संभल नहीं जा सके, लेकिन जो राजनीतिक संदेश वे देना चाहते थे, वह साफ हो गया।
संभल हिंसा के बहाने मुस्लिमों को साधने की रणनीति
संभल में हाल ही में हुई हिंसा में मारे गए सभी पांच युवक मुस्लिम समुदाय से थे। राहुल गांधी का पीड़ित परिवारों से मिलकर सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश देना और मुस्लिमों के विश्वास को फिर से जीतने की कोशिश करना उनकी प्राथमिकता थी।
इस दौरे को सपा के लिए एक स्पष्ट सियासी संदेश माना जा रहा है। यूपी में कांग्रेस और सपा का राजनीतिक आधार एक ही है—मुस्लिम और दलित मतदाता। ऐसे में राहुल गांधी का संभल जाना सपा के लिए चिंता का विषय बन गया है।
सपा की प्रतिक्रिया: कांग्रेस पर औपचारिकता का आरोप
सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने राहुल गांधी के दौरे पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कांग्रेस संसद में संभल का मुद्दा नहीं उठा रही, लेकिन दौरा कर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। उन्होंने कहा, “सपा का प्रतिनिधिमंडल पहले ही संभल जाने की कोशिश कर चुका है, लेकिन प्रशासन ने उसे रोका। कांग्रेस को पता था कि पुलिस उन्हें जाने नहीं देगी, फिर भी यह सिर्फ औपचारिकता कर रही है।”
मुस्लिम वोटों की जंग: सपा बनाम कांग्रेस
उत्तर प्रदेश में लगभग 20% मुस्लिम मतदाता हैं, जो कभी कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक थे। लेकिन राम मंदिर आंदोलन के बाद यह वोट सपा और बसपा की ओर खिसक गया। अब कांग्रेस फिर से इन मतदाताओं को वापस लाने की कोशिश कर रही है।
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 6 सीटें मिलीं, जबकि कई सीटों पर वह मामूली अंतर से हारी। यह प्रदर्शन कांग्रेस के लिए उत्साहजनक रहा है। वहीं, सपा को डर है कि कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा सकती है, जिससे उसका राजनीतिक आधार कमजोर हो सकता है।

राहुल गांधी की यूपी में बढ़ती सक्रियता
रायबरेली से सांसद बनने के बाद से राहुल गांधी ने यूपी में लगातार दौरे किए हैं। हाथरस में दलित परिवार से मुलाकात हो या रायबरेली में दलित हत्याकांड पर न्याय की मांग—राहुल हर मौके को भुनाने की कोशिश में हैं। अब संभल दौरा भी उसी कड़ी का हिस्सा है।
सपा-कांग्रेस के रिश्तों पर असर
मुस्लिम वोटों को लेकर सपा और कांग्रेस के बीच तनातनी साफ नजर आ रही है। सपा को डर है कि कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता उसके परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। उपचुनावों में सीट शेयरिंग पर मतभेद पहले ही दोनों दलों के रिश्तों को तनावपूर्ण बना चुके हैं।
क्या बदलेंगे सियासी समीकरण?
2027 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस अभी से जमीन तैयार कर रही है। राहुल गांधी का फोकस दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर है, जबकि सपा भी इसी वोट बैंक पर निर्भर है। ऐसे में दोनों दलों के बीच बढ़ती राजनीतिक प्रतिस्पर्धा अगले चुनावों में दिलचस्प सियासी समीकरण बना सकती है।
अब देखना यह है कि राहुल गांधी की यह रणनीति कांग्रेस को यूपी में राजनीतिक वापसी दिला पाती है या नहीं।