नई दिल्ली/बीजिंग – भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर इन दिनों दो देशों की यात्रा पर हैं, जिसके तहत वे शीघ्र ही चीन की बहुप्रतीक्षित यात्रा पर रवाना होंगे। यह दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक है, क्योंकि पिछले पांच वर्षों में यह पहली बार है जब भारत के शीर्ष राजनयिक चीन का दौरा करने जा रहे हैं। इस यात्रा का उद्देश्य वर्ष 2020 की गलवान घाटी झड़प के बाद से बिगड़े हुए भारत-चीन संबंधों में ठहराव को तोड़ना और द्विपक्षीय संवाद को फिर से पटरी पर लाना है।
विदेश मंत्री जयशंकर मंगलवार को तियानजिन में आयोजित होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेंगे। इस दौरान उनकी चीन के विदेश मंत्री वांग यी से द्विपक्षीय वार्ता भी प्रस्तावित है, जिसमें सीमा विवाद, व्यापारिक संबंध, और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे प्रमुख मुद्दों पर चर्चा होगी।
गलवान संघर्ष: एक रिश्ते की सबसे बड़ी दरार
15 जून 2020 को गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प ने द्विपक्षीय संबंधों को छह दशकों के सबसे निचले स्तर तक पहुंचा दिया था। इस संघर्ष में भारत के 20 जवान शहीद हुए थे, जिसमें एक कमांडिंग ऑफिसर भी शामिल थे। जबकि चीन ने अपने हताहत सैनिकों की संख्या तो स्वीकार की, लेकिन असली आंकड़े छुपा लिए। कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में दावा किया गया कि चीन को भारत से अधिक नुकसान उठाना पड़ा।
यह झड़प 1962 के युद्ध के बाद सबसे घातक सैन्य संघर्ष के रूप में दर्ज हुई। इसके बाद भारत-चीन संबंधों में कूटनीतिक बर्फ जम गई थी। हालांकि, हाल के वर्षों में सीमा पर गश्त और विवादित क्षेत्रों में समझौते के संकेत मिले हैं, जिनमें देपसांग और डेमचोक सेक्टर भी शामिल हैं।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद बदला समीकरण
भारत की यह कूटनीतिक कवायद ऐसे समय में हो रही है जब 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव फिर से चरम पर है। इस हमले के बाद भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, लेकिन चीन ने पाकिस्तान को खुला समर्थन दे दिया।
चीन ने एक तरफ हमले की निंदा करते हुए आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने की बात कही, वहीं दूसरी तरफ उसने पाकिस्तान को “अडिग मित्र” बताते हुए सैन्य समर्थन देने का एलान कर दिया। भारत के उप-सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह के अनुसार, पाकिस्तान की सेना द्वारा उपयोग में लाए जा रहे 81% हथियार चीन निर्मित हैं।
नई शुरुआत की उम्मीद
इन तमाम जटिलताओं के बावजूद, विदेश मंत्री जयशंकर की यह यात्रा भारत-चीन संबंधों में पुनरुत्थान की संभावनाओं से भरपूर है। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच कई स्तरों पर संवाद के प्रयास हुए हैं, और इस यात्रा को सीमा विवाद सुलझाने और रणनीतिक संतुलन बहाल करने की दिशा में अहम पहल माना जा रहा है।
अगर यह दौरा सफल रहता है, तो यह न केवल LAC पर तनाव को कम कर सकता है, बल्कि दक्षिण एशिया में एक स्थिर कूटनीतिक परिदृश्य बनाने में भी सहायक हो सकता है।
मुख्य बिंदु:
5 वर्षों में एस जयशंकर का पहला चीन दौरा
गलवान संघर्ष के बाद पहली उच्चस्तरीय द्विपक्षीय वार्ता
SCO विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा
पहलगाम आतंकी हमले के बाद चीन-पाक गठजोड़ पर भारत की रणनीति
सीमा विवाद, व्यापार और क्षेत्रीय सुरक्षा पर संवाद की उम्मीद