नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने कहा है कि संघ का काम समाज और देश को जोड़ना है — विभाजित करना नहीं। उन्होंने देश के सौं वर्ष से अधिक के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में संघ की भूमिका को अहम बताया और कांग्रेस पर कड़ा हमला बोला कि उसे देश के विभाजन का भी हिसाब करना चाहिए। साथ ही इंद्रेश ने हिमालय, तिब्बत-कैलाश मानसरोवर और ब्रह्मपुत्र जैसी संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा और भौगोलिक मुद्दों पर भी अपनी दावा-भरी बात रखी।
“संघ जोड़ने का काम करता है”—100 सालों की उपलब्धि का उल्लेख
इंद्रेश कुमार ने कहा कि पिछले एक सदी में देश के सफल विकास और नयी पहचान बनाने में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में संघ के योगदान की प्रशंसा का भी हवाला देते हुए इसे एक बड़ा संदेश बताया। इंद्रेश ने कहा: “संघ जोड़ने का काम करता है; तोड़ने का नहीं। यह देश की एकता और नैतिकता पर काम करता है।”
कांग्रेस पर तीखा हमला—“अपना आइना देखें”
केंद्र सरकार और संघ पर उठ रहे आरोपों के संदर्भ में इंद्रेश कुमार ने कांग्रेस-नेताओं के बयान पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि जो लोग संघ पर टिप्पणी करते हैं — जैसे राहुल गांधी और कांग्रेस — उन्हें अपने इतिहास का भी सामना करना चाहिए। इंद्रेश के अनुसार कांग्रेस के शासकीय दौर में देश विभाजित हुआ और यह ऐतिहासिक सच्चाई पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने यह तर्क दिया कि वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व ने स्वतंत्रता-संग्राम में व्यक्तिगत योगदान नहीं दिया; वे पूर्वजों के वंशज हैं — और इतिहास पर नजर डालते हुए कांग्रेस को अपने किए पर जवाबदेही दिखानी चाहिए।नोट: यह टिप्पणी इंद्रेश कुमार के व्यक्तिगत एवं संगठनात्मक नजरिये का प्रस्तुतीकरण है — इसे समाचार रिपोर्ट में उनके हवाले से दिया गया है।
हिमालय को राष्ट्रीय सुरक्षा का आधार बताया—तिब्बत-कैलाश पर बयान
इंद्रेश कुमार ने हिमालय की भूगोलिक और सांस्कृतिक अहमियत पर बल देते हुए कहा कि हिमालय केवल भारत का नहीं बल्कि पूरी दुनिया का पोषण करता है। उन्होंने कहा कि हिमालय दिल्ली-नई दिल्ली की सुरक्षा का सबसे बड़ा आधार है और कभी-कभी पड़ोसी देश तथा विदेशी शक्तियाँ इस क्षेत्र में “दखल” कर के अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करती हैं।
इंद्रेश ने कहा कि संघ-संबद्ध संगठनों की पहलें हिमालय की रक्षा, भारत की सुरक्षा सुनिश्चित करने और चीन के अतिक्रमण से कैलाश-मानसरोवर जैसे पवित्र स्थलों को मुक्त कराने के लक्ष्य के साथ काम कर रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे तिब्बत की आज़ादी और दलाई लामा के तिब्बत लौटने की भविष्यवाणी करते हुए यह आशा जताई कि जल्द ही ऐसा देखा जाएगा। इस तरह के बयान विदेश नीति-संवेदनशील हैं और इनके दावे राजनीतिक अभिव्यक्ति के दायरे में आते हैं।
ब्रह्मपुत्र पर चिन का बांध बनाने का विरोध—पूर्वोत्तर की चिंता
इंद्रेश कुमार ने यह भी कहा कि संघ ऐसे कदमों का विरोध करेगा जिनसे ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह पर असर पड़े और पूर्वोत्तर क्षेत्र में कठिनाइयाँ पैदा हों। उनका कहना था कि चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाये जाने की योजनाएँ क्षेत्रीय जल-सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं और इसके प्रभावों की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिये जागरूकता और कूटनीतिक पहलें आवश्यक हैं।
राजनीतिक और कूटनीतिक निहितार्थ
इंद्रेश कुमार के ये बयान कुछ प्रमुख लक्ष्यों को रेखांकित करते हैं:
संघ की सार्वजनिक छवि को एकजुटता-प्रवर्तनकर्ता के रूप में स्थापित करना;
विपक्ष विशेषकर कांग्रेस को ऐतिहासिक आरोपों के ज़रिए तर्कात्मक चुनौती देना;
सीमा-संबंधी और जल-संसाधन मुद्दों पर सैद्धान्तिक एवं भावनात्मक जनसमर्थन जुटाना;
तिब्बत-कैलाश जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सॉफ्ट-पॉवर और सियासत को जोड़ना।
ये बयाने आंतरिक राजनीति के साथ-साथ विदेश नीति और सीमापरक सुरक्षा चर्चाओं को भी प्रभावित कर सकती हैं — खासकर जब वे मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर सुर्खियाँ बनती हैं।
बयान और प्रतिक्रियाएँ आगे दिखेंगी
इंद्रेश कुमार का भाषण और उनके कड़े आरोप भारतीय राजनीतिक बहस में एक नया अध्याय जोड़ते हैं। जहां एक ओर वे संघ की ऐतिहासिक भूमिका और हिमालय-संबंधी चिंताओं पर ज़ोर दे रहे हैं, वहीं उनके कांग्रेस पर के आरोप विपक्षी अनुक्रमों और इतिहास-विमर्श को फिर से गर्म करेंगे। अब देखना होगा कि राजनीतिक दल, कूटनीतिक क्षेत्र और नागरिक समाज इन तर्कों पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं और आगे की बहस किस दिशा में जाती है।