कर्नाटक के सहकारिता मंत्री के.एन. राजन्ना ने मतदाता सूची में आई अनियमितताओं को लेकर अपनी ही पार्टी की चुप्पी पर सवाल उठाने के बाद अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। राजन्ना ने अपना इस्तीफ़ा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को सौंपा; इसे स्वीकृति के लिए पहले राज्यपाल के सचिवालय भेजा गया और बाद में राज्यपाल थावर चंद गहलोत ने मंजूरी दे दी।
क्या कहा था राजन्ना ने
राजन्ना ने विशेष रूप से महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र की वोटर लिस्ट में पाई गई अनियमितताओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि नेता-विपक्ष राहुल गांधी ने इन घटनाओं को ‘वोट चोरी’ करार दिया, परन्तु वह यह भी याद दिलाना चाहते हैं कि यह संशोधन तब हुआ था जब कांग्रेस की अपनी सरकार सत्ता में थी। उनका प्रश्न था कि उस समय पार्टी ने इन अनियमितताओं पर आपत्ति क्यों नहीं जताई और निगरानी क्यों नहीं की गई — यह बयान पार्टी की वर्तमान पॉलिसी और रुख से मेल नहीं खाया।
अंदरूनी तनाव और तकरार
राजन्ना की टिप्पणी के बाद उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने उन पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और मामला राजनीतिक रूप से गर्मा गया। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस हाईकमान ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को राजन्ना को मंत्रिमंडल से हटाने का निर्देश दिया, जिसके बाद राजन्ना का इस्तीफ़ा आया।
राहुल गांधी के आरोप — पृष्ठभूमि
कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस और बेंगलुरु रैली दोनों में आरोप लगाया था कि केंद्र की भाजपा सरकार ने वोट चोरी करके सत्ता हासिल की है। उन्होंने विशेषकर बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा था कि वहाँ कथित रूप से एक लाख से अधिक फर्जी मतदाता सूची में शामिल हैं।
राजन्ना के बयान का राजनीतिक असर
राजन्ना के खुलासे ने कांग्रेस के भीतर असंतोष और आरोप-प्रत्यारोप के मामले को हवा दी। उनके शब्दों ने यह प्रश्न उठाया कि यदि अनियमितताएं पार्टी के सत्ता काल में हुईं तो उस समय कार्रवाई न करने का औचित्य क्या था — और यही सवाल पार्टी के लिए राजनीतिक चुनौती बन गया।
कौन हैं के.एन. राजन्ना? (संक्षिप्त परिचय)
के.एन. राजन्ना कर्नाटक के अनुभवी नेता हैं और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के करीबी माने जाते रहे हैं। उनका जन्म 13 अप्रैल 1951, तुमकुर तालुका में हुआ। उन्होंने B.Sc. और LLB की डिग्रियाँ प्राप्त की हैं और 1972 से सहकारी आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं। वे 1998 में पहली बार कर्नाटक विधान परिषद के सदस्य बने; बाद में मधुगिरी से विधायक रहे और 2013 तथा 2023 में विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं (2008 व 2018 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था)। राजन्ना सहकारी बैंक और सहकारी केंद्रीय बैंक के निदेशक रह चुके हैं तथा स्थानीय स्तर पर नगर पंचायत अध्यक्ष और कृषि उपज मंडी समिति के सदस्य भी रहे हैं।
आगे क्या हो सकता है
राजन्ना के इस्तीफ़े के बाद कर्नाटक में राजनीतिक समीकरणों और पार्टी-आंतरिक संतुलन पर चर्चा तेज़ हो गई है। मामले ने विपक्ष-सरकार के बीच मतदाता सूची और चुनावी मानकों से जुड़े मूल सवालों को फिर से उभारा है। आगे देखने वाली बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व किस प्रकार स्थिति संभालता है और क्या पार्टी इस विवाद का उचित तरीके से राजनीतिक व प्रशासकीय समाधान निकाल पाएगी।