जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को गंदरबल हमले के बाद अपने शब्दों के चयन को लेकर भारी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने हमलावरों को ‘आतंकवादी’ कहने के बजाय ‘उग्रवादी’ कहा, जिससे जनता में नाराजगी बढ़ गई है। यह घटना, जो गंदरबल जिले के कंगन क्षेत्र में हुई थी, ने सुरक्षा कर्मियों की जान ले ली और पहले से ही अस्थिर क्षेत्र में तनाव और बढ़ा दिया। अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया में हमलावरों को ‘उग्रवादी’ कहने पर कई लोगों ने आपत्ति जताई है, जिनका मानना है कि यह शब्द उनके कृत्यों की गंभीरता को कम करके दर्शाता है।
जनता की नाराजगी का मुख्य कारण यह है कि ‘उग्रवादी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल इन समूहों द्वारा किए गए क्रूर कार्यों को सामान्य करने जैसा प्रतीत होता है। यह पहली बार नहीं है जब उमर अब्दुल्ला को उनके बयानबाजी के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है। कई लोगों का मानना है कि जम्मू और कश्मीर में हाल के दिनों में बढ़ती हिंसा के संदर्भ में, राजनीतिक नेताओं को खासकर अपने शब्दों में सख्त रुख अपनाना चाहिए।
यह आलोचना उमर अब्दुल्ला की उस भाषा शैली पर भी सवाल उठाती है, जिसे वह और उनकी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, अक्सर अपनाती रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस, जो क्षेत्र की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक है, अक्सर उग्रवाद और आतंकवाद से निपटने के तरीके को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों से असहमति का सामना करती रही है। अब्दुल्ला के बयानों को सिर्फ उनकी व्यक्तिगत राय के रूप में नहीं, बल्कि पार्टी की व्यापक नीति के रूप में देखा जाता है।
क्षेत्र में ‘उग्रवादी’, ‘विद्रोही’ और ‘आतंकवादी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल राजनीतिक झुकावों के आधार पर किया जाता रहा है, और इस पर बहस कोई नई बात नहीं है। उमर अब्दुल्ला द्वारा ‘उग्रवादी’ शब्द के इस्तेमाल को उनके आलोचक हमलावरों की कड़ी निंदा से बचने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं, जो कि उनके अनुसार हमले की गंभीरता को कमजोर करता है।
यह विवाद जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक नेताओं के सामने आ रही बढ़ती चुनौतियों को उजागर करता है, जहां हर बयान को व्यापक संदर्भ में देखा और उसकी आलोचना की जाती है। जनता की धारणा राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और अब्दुल्ला के इस मामले को संभालने के तरीके पर विपक्ष और जनता दोनों की कड़ी नजर है।
VIKAS TRIPATHI
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