नई दिल्ली,— उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मचे घमासान के बीच राजनीति और न्यायपालिका आमने-सामने खड़े नज़र आ रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी पर नक्सलवाद का “समर्थन” करने का आरोप लगाने के बाद यह विवाद और गहराता जा रहा है। शाह की टिप्पणी पर देश के 18 पूर्व न्यायाधीश एकजुट होकर सामने आए और इसे “पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या” बताते हुए न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक करार दिया।
18 पूर्व जजों का कड़ा बयान
इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, मदन बी. लोकुर, जे. चेलमेश्वर, ए. के. पटनायक, अभय ओका, गोपाल गौड़ा, विक्रमजीत सेन जैसे नाम शामिल हैं।
इनका कहना है कि:
•“किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या न्यायाधीशों पर दबाव बना सकती है।”
•“यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को चोट पहुंचाने वाला कदम है।”
सलवा जुडूम और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
•सलवा जुडूम (2005): छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद से निपटने के लिए आदिवासियों को विशेष पुलिस अधिकारी बनाकर हथियार दिए गए।
•आरोप: आंदोलन ने ग्रामीणों पर अत्याचार, विस्थापन और मानवाधिकार उल्लंघन को जन्म दिया।
•2011 फैसला (रेड्डी और चौहान की बेंच): सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक ठहराया और कहा कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
अमित शाह की आपत्ति
केरल में सभा को संबोधित करते हुए शाह ने कहा था:
“सुदर्शन रेड्डी वही व्यक्ति हैं जिन्होंने नक्सलवाद की मदद की। अगर सलवा जुडूम पर फैसला नहीं आता तो नक्सलवाद 2020 तक खत्म हो गया होता।”
सुदर्शन रेड्डी का जवाब
•“मैं गृह मंत्री से टकराव नहीं चाहता।”
•“उनका कर्तव्य है हर नागरिक की सुरक्षा।”
•“काश उन्होंने फैसला पढ़ा होता। तब शायद ऐसी टिप्पणी न करते।”
राजनीति और न्यायपालिका के टकराव का इतिहास
यह पहला मौका नहीं है जब न्यायपालिका और राजनीति आमने-सामने खड़े हुए हों।
•इमरजेंसी (1975-77): उस समय सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और कार्यपालिका के टकराव ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े किए।
•NJAC केस (2015): संसद ने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) के जरिए जजों की नियुक्ति पर नियंत्रण की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की पुष्टि की।
•हालिया विवाद: समय-समय पर कई उच्च राजनीतिक पदाधिकारियों द्वारा CJI या सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर की गई टिप्पणियों ने “न्यायपालिका पर दबाव” की आशंका को जन्म दिया।
उपराष्ट्रपति चुनाव में नया मोड़
•इंडिया गठबंधन: सुदर्शन रेड्डी को उतारकर यह संदेश देना चाहता है कि वे नैतिक और संवैधानिक मूल्यों के प्रतीक उम्मीदवार को सामने रख रहे हैं।
•एनडीए: इसका जवाब देते हुए कह रही है कि रेड्डी का एक अहम फैसला देश की सुरक्षा के खिलाफ था।
•पूर्व जजों की प्रतिक्रिया ने अब इसे सिर्फ चुनावी नहीं बल्कि न्यायपालिका की स्वायत्तता के सवाल से भी जोड़ दिया है।
यह विवाद अब केवल उपराष्ट्रपति चुनाव का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह “भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाम राजनीतिक हस्तक्षेप” की ऐतिहासिक बहस को फिर से जगा रहा है।
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