
सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा भले ही न्याय के लिए खुलता हो, लेकिन कभी-कभी वह रिश्तों को बचाने की एक उम्मीद भी लेकर आता है। सोमवार को एक तलाक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पति-पत्नी को एक खास सलाह दी — “अतीत को थामे रहना व्यर्थ है, अपने भविष्य को लेकर सोचिए।”
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ फैशन इंडस्ट्री से जुड़ी एक महिला उद्यमी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपने तीन साल के बेटे के साथ विदेश यात्रा की अनुमति मांगी थी। कोर्ट ने याचिका पर सीधे आदेश देने की बजाय, दोनों पक्षों को आत्मचिंतन और संवाद की राह दिखाई।
“आपका एक नन्हा बच्चा है, फिर अहंकार की लड़ाई क्यों?” – जज नागरत्ना ने दोनों से पूछा। उन्होंने कहा, “आज रात साथ खाना खाइए, कॉफी पर बहुत कुछ सुलझ सकता है।”
“हम आपको एक ड्राइंग रूम देंगे, कैंटीन नहीं!” — कोर्ट का दिल से जुड़ा प्रस्ताव
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मानवीय हस्तक्षेप करते हुए दंपति को सुझाव दिया कि वे अपने मतभेदों को दूर करने के लिए कोर्ट परिसर में मिलने का प्रयास करें। कोर्ट ने यहां तक कहा कि,
“हमारी कैंटीन शायद आपके लिए सही जगह न हो, लेकिन हम आपको एक ड्राइंग रूम ज़रूर देंगे — बैठिए, बात कीजिए, रिश्तों को एक और मौका दीजिए।”
“बातचीत से सुलझ सकते हैं रिश्ते”
कोर्ट ने दंपति को सुझाव दिया कि वे अतीत की कड़वाहट को एक ‘कड़वी गोली’ की तरह निगलें और भविष्य की संभावनाओं पर फोकस करें। इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई मंगलवार तक स्थगित करते हुए उम्मीद जताई कि शायद रात का एक भोजन और थोड़ी बातचीत रिश्तों में नई राह खोल सके।
मानवता से भरी न्यायपालिका
यह फैसला महज़ एक कानूनी हस्तक्षेप नहीं, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था के उस पक्ष को भी उजागर करता है जहां कानून के साथ करुणा और संवाद की भी अहमियत है।