Wednesday, July 30, 2025
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भाषा की गुंडागर्दी या सत्ता की मिलीभगत?

मराठी न बोल पाने की ‘सज़ा’ — ये थप्पड़ एक बुज़ुर्ग के चेहरे पर नहीं, महाराष्ट्र की संवैधानिक आत्मा पर पड़ा है।

मुंबई की सड़कों पर एक बुज़ुर्ग गुजराती दुकानदार को सरेआम थप्पड़ मारा गया — सिर्फ इसलिए कि वह मराठी नहीं बोल सके।
थप्पड़ मारने वाले कौन थे?
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के वही स्वघोषित ‘मराठी रक्षक’, जिनका राष्ट्रवाद सिर्फ़ फुटपाथ, ठेलों और गरीबों के खिलाफ दहाड़ता है — लेकिन असली ताकतवर अपराधियों के सामने दुम दबा लेता है।

यह कोई मामूली घटना नहीं — यह लोकतंत्र के गाल पर एक जोरदार तमाचा है।

MNS की ‘भाषाई वीरता’ — सिर्फ़ कमज़ोरों पर चलती है

मराठी अस्मिता के नाम पर MNS के गुंडे अक्सर छोटे दुकानदारों, रिक्शा चालकों, ठेलेवालों को निशाना बनाते हैं।
उनके लिए न संविधान मायने रखता है, न ही इंसानियत।
कोई CCTV न हो, तो मारो।
कोई विरोध न कर सके, तो चुप करा दो।
वीडियो बनाओ, पोस्ट करो — और ‘मराठी गौरव’ के नाम पर तालियां बजवाओ।

लेकिन जब बात आती है ड्रग माफिया, अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ, या सांप्रदायिक कट्टरपंथ की — तब ये ‘मराठी शेर’ बिल में घुस जाते हैं।

सरकार की चुप्पी — संयोग नहीं, सहयोग?

गृह विभाग खुद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास है।
एक ज़माने में खुद को ‘साहसी प्रशासक’ कहने वाले फडणवीस अब ‘राजनीतिक शांति पाठ’ में डूबे हुए हैं।
क्या उन्हें यह नहीं पता कि इस तरह की घटनाएं सिर्फ़ व्यक्ति पर हमला नहीं हैं, बल्कि महाराष्ट्र की सहिष्णुता, बहुलता और संविधान की आत्मा पर सीधा हमला हैं?

क्या सत्ता में बने रहने की मजबूरी ने MNS की गुंडागर्दी को ‘ठेके पर सहमति’ में बदल दिया है?

क्या महाराष्ट्र अब ‘भाषाई तानाशाही’ की प्रयोगशाला बन चुका है?

क्या अब राज्य में बसने के लिए भाषा परीक्षा पास करनी होगी?
क्या हर दुकान पर ‘मैं मराठी बोलता हूँ’ का सर्टिफिकेट टांगना अनिवार्य होगा?
अगर एक बुज़ुर्ग व्यापारी मराठी नहीं बोल सका, तो क्या उसे अपमानित करना अब ‘मराठी अस्मिता’ की सेवा मानी जाएगी?

“जय महाराष्ट्र” का नारा कब “मारो महाराष्ट्र” बन गया — कोई नहीं जान पाया।

यह तमाचा सत्ता के गाल पर पड़ा है — और इसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई देनी चाहिए

ये थप्पड़ सिर्फ़ एक नागरिक को नहीं, बल्कि भारत के संविधान को मारा गया है।
देवेंद्र फडणवीस जी, क्या आप सिर्फ़ ट्विटर पर कानून-व्यवस्था की बघार देंगे या इन भाषाई अपराधियों से भी सवाल पूछने का साहस करेंगे?

या फिर आपके लिए MNS की कृपा सत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक ‘राजनीतिक सौदा’ बन चुकी है?


अंत में…

अब फैसला जनता को करना है —
क्या हम भाषा के नाम पर हिंसा और नफरत को स्वीकार कर लेंगे?
या संविधान की उस मूल भावना के साथ खड़े होंगे, जो हर भाषा को समान सम्मान और हर नागरिक को बोलने की आज़ादी देती है?

मराठी, हिंदी, गुजराती, तमिल — ये सभी भारत माता की संतानें हैं।
किसी भी भाषा के नाम पर हिंसा — राष्ट्रद्रोह से कम नहीं।
और जो सरकार ऐसी हिंसा पर चुप है — वह सिर्फ़ सत्ता में नहीं, संविधान के कटघरे में भी खड़ी है।

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VIKAS TRIPATHI
VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
VIKAS TRIPATHI भारत देश की सभी छोटी और बड़ी खबरों को सामने दिखाने के लिए "पर्दाफास न्यूज" चैनल को लेके आए हैं। जिसके लोगो के बीच में करप्शन को कम कर सके। हम देश में समान व्यवहार के साथ काम करेंगे। देश की प्रगति को बढ़ाएंगे।
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