जन्म कुंडली का सप्तम भाव पति-पत्नी का भाव भी होता है। गुरु, शुक्र और मंगल इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ज्योतिषाचार्य पंडित नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि :-
1.किसी की कुंडली में गुरु और शुक्र या दोनों में से एक भी ग्रह, पाप प्रभाव में हो तो उसके वैवाहिक जीवन में बाधा आती है।
2:- सप्तम भाव और सप्तम भाव का स्वामी पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो पति-पत्नी में किसी न किसी बात पर लड़ाई-झगड़ा होता रहता है!
3:- सप्तम भाव पर अगर सूर्य की पूर्ण दृष्टि हो और शनि, राहू मंगल में से एक भी ग्रह सप्तम भाव को देखे तो भी पति-पत्नी के बीच विवाद रहता है!
4:- सप्तम भाव और सप्तम भाव के स्वामी और गुरु या शुक्र पर सूर्य मंगल, शनि, राहू आदि का प्रभाव हो तो पति-पत्नी का संबंध विच्छेद होता है।
5:- सूर्य अगर सप्तम भाव में होगा, साथ में किसी भी पाप ग्रह की दृष्टि सप्तम भाव पर हो तो पति-पत्नी की आपस में नहीं बनेगी।
6:- लग्र, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भावों में से किसी भी एक भाव में मंगल होने से जातक मांगलिक हो जाता है। उसका विवाह मंगलीक से ही करना चाहिए अन्यथा पूरे जीवन भर पति-पत्नी दोनों के बीच लड़ाई-झगड़ा रहता है।
7:- जब भी किसी की कुण्डली में गुरु या शुक्र में से कोई भी एक ग्रह पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होगा….!!
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✍🏻आचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री, संपर्क सूत्र:- 9993652408, 7828289428
VIKAS TRIPATHI
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