भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में जस्टिस सूर्यकांत ने शपथ ले ली है। उन्होंने जस्टिस बी.आर. गवई का स्थान लिया है और अगले लगभग 15 महीनों तक इस पद पर अपनी सेवाएँ देंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस ऐतिहासिक अवसर पर सात देशों के मुख्य न्यायाधीश भी उपस्थित रहे।
सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस सूर्यकांत अनेक महत्वपूर्ण संवैधानिक फैसलों के कारण सुर्खियों में रहे हैं। आर्टिकल 370, पेगासस, राजद्रोह कानून और बिहार वोटर लिस्ट जैसे मामलों में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। उनके CJI बनने के साथ ही उनके पुराने फैसलों और न्यायिक दृष्टिकोण पर फिर से देशभर में चर्चा तेज हो गई है।
जस्टिस सूर्यकांत : एक साधारण पृष्ठभूमि से देश के शीर्ष न्यायिक पद तक
10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत ने एक छोटे शहर से वकालत की शुरुआत कर देश की सर्वोच्च अदालत तक का सफर तय किया।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से उन्होंने कानून में मास्टर डिग्री फर्स्ट क्लास फर्स्ट के साथ पूरी की।
मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले वे 5 अक्टूबर 2018 से हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे। उससे पहले पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए थे।
CJI सूर्यकांत के पाँच बड़े और ऐतिहासिक फैसले
1.अनुच्छेद 370 पर ऐतिहासिक निर्णय
11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को वैध ठहराया। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। यह फैसला भारतीय संघीय ढांचे में एक मील का पत्थर माना गया।
2.राजद्रोह कानून (धारा 124A) पर रोक
राजद्रोह कानून की संवैधानिकता पर सुनवाई करते हुए जिस बेंच ने इसे निलंबित किया, उसमें जस्टिस सूर्यकांत ने प्रमुख भूमिका निभाई। अदालत ने निर्देश दिया कि सरकार कानून की समीक्षा पूरी होने तक इसके तहत नई FIR दर्ज न करे। इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संरक्षण की दिशा में बड़े कदम के रूप में देखा जाता है।
3.पेगासस जासूसी मामला
पेगासस स्पाइवेयर से संबंधित मामले में जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट कहा कि “राष्ट्रीय सुरक्षा” कोई ऐसा कवच नहीं है जिसके नाम पर राज्य सब कुछ छिपा सके। उनकी टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने विशेषज्ञों की स्वतंत्र जांच समिति गठित की — यह फैसला लोकतांत्रिक पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम माना गया।
4.बिहार वोटर लिस्ट की पारदर्शिता
बिहार में 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने के मुद्दे पर जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग को पूरा विवरण सार्वजनिक करने का निर्देश दिया। यह निर्णय मतदाता अधिकारों और चुनावी पारदर्शिता को मजबूत करने वाला माना गया।
5.राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर महत्वपूर्ण व्याख्या
20 नवंबर 2025 को पाँच-सदस्यीय संविधान पीठ ने अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रेफरेंस पर राय दी। जस्टिस सूर्यकांत का इस फैसले में अहम योगदान रहा।
पीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका राष्ट्रपति या राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए बाध्य समयसीमा तो नहीं दे सकती, लेकिन लंबे समय तक निष्क्रियता होने पर अदालत समीक्षा कर सकती है।
यह फैसला तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि वाले विवाद के बाद बेहद महत्वपूर्ण माना गया।
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने करियर में ऐसे कई फैसले सुनाए हैं, जिन्होंने भारतीय संवैधानिक इतिहास और लोकतंत्र को नई दिशा दी है। अब CJI के रूप में उनसे न्यायपालिका में सुधार, पारदर्शिता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की उम्मीदें और भी बढ़ गई हैं।














