Friday, August 8, 2025
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“अब हर सुबह मेरे सामने यह हिंदुस्तान नहीं होगा”: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया हुए सेवानिवृत्त, विदाई में छलका भावनाओं का सागर

नई दिल्ली, 10 अगस्त – सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने शुक्रवार को औपचारिक पीठ के समक्ष अपनी विदाई के दौरान भावुक होकर कहा,

“जब मैं पद छोड़ूंगा, तो मुझे सबसे ज़्यादा ‘हिंदुस्तान’ की याद आएगी।”

यह ‘हिंदुस्तान’ कोई भौगोलिक नक्शा नहीं, बल्कि अदालत के उस जीवंत परिदृश्य का नाम था, जहां देश के कोने-कोने से आने वाले वकील, मुकदमे और लोगों की कहानियाँ हर सुबह उनके सामने खुलती थीं।

“अब हर सुबह मेरे सामने यह हिंदुस्तान नहीं होगा,” – जस्टिस धूलिया की यह पंक्ति सुप्रीम कोर्ट की भव्य दीवारों के बीच भावनाओं की गूंज बनकर रह गई।

लंबा और गरिमामय न्यायिक सफर

जस्टिस धूलिया का जन्म 10 अगस्त 1960 को हुआ था। उन्होंने 1983 में आधुनिक इतिहास में एमए और 1986 में एलएलबी की डिग्री हासिल की। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में सिविल और संवैधानिक मामलों की वकालत से की।

वर्ष 2008 में वे उत्तराखंड हाईकोर्ट के जज बने, फिर जनवरी 2021 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए और 9 मई 2022 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।

“जटिल मुद्दों को सरलता से समझने की विलक्षण क्षमता”

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में समारोह का संचालन कर रहे CJI बीआर गवई ने कहा—

जस्टिस धूलिया का दृष्टिकोण शांत, आत्मविश्वासी और गहराई से भरा रहा। वे एक ऐसे न्यायाधीश रहे जिन्होंने न्यायिक प्रक्रिया में गरिमा और मानवीय संवेदनाओं को बराबरी से जगह दी।”

मुख्य न्यायाधीश ने यह भी याद किया कि वे गढ़वाल जैसे खूबसूरत और दूरस्थ इलाके से आते हैं और स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत से जुड़े हुए हैं।

“उनका नज़रिया कभी पूर्वग्रह से ग्रस्त नहीं रहा”

महाधिवक्ता आर. वेंकटरमणी ने कहा:

“उन्होंने अदालत में हमेशा मानवीय पक्ष को प्राथमिकता दी। उनके सामने कोई भी व्यक्ति खुद को ‘सिर्फ एक केस नंबर’ नहीं, बल्कि एक इंसान महसूस करता था।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उन्हें “साहित्य और उर्दू ग़ज़लों के रसिक” बताते हुए कहा—

“उन्होंने कभी पूर्व-निर्धारित राय के साथ फैसला नहीं सुनाया। इलाहाबाद की तहज़ीब को उन्होंने न्यायिक आचरण में जीवित रखा।”

“इतिहास के ज्ञाता, लेकिन फैसले हमेशा वर्तमान के लिए प्रासंगिक”

SCAORA अध्यक्ष विपिन नायर ने कहा कि जस्टिस धूलिया ने भले ही इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री ली हो, लेकिन उनके फैसले वर्तमान की ज़रूरतों के अनुसार तर्कसंगत और समकालीन रहे।


एक न्यायप्रिय, विनम्र और विचारशील न्यायाधीश को विदाई

जस्टिस सुधांशु धूलिया अब न्यायिक कुर्सी पर नहीं होंगे, लेकिन उनका कार्य, उनके विचार और उनकी गरिमा सुप्रीम कोर्ट की परंपरा में हमेशा जीवित रहेंगे। जैसे उन्होंने खुद कहा—

“हिंदुस्तान से मेरा मतलब आप सभी से है…”

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