नई दिल्ली / हैदराबाद — भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की सतर्कता और वैज्ञानिकों की दृढ़ता ने एक संभावित बड़ी त्रासदी को टाल दिया। इसरो प्रमुख एवं अंतरिक्ष विभाग के सचिव वी. नारायणन ने खुलासा किया कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के लिए रवाना हुए एक्सिओम-4 (Ax-4) मिशन के रॉकेट में गंभीर तकनीकी खामी मिली थी। यदि इस समस्या को नजरअंदाज कर उड़ान भरने की कोशिश होती, तो मिशन विनाशकारी विफलता में बदल सकता था।
11 जून का प्रक्षेपण स्थगित
नारायणन ने उस्मानिया विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए बताया कि 10 जून को अमेरिकी कैनेडी स्पेस सेंटर में इसरो की टीम ने रॉकेट की मुख्य फीड लाइन में दरार की पहचान की। भारतीय वैज्ञानिकों ने तत्काल विस्तृत जांच और सुधार की मांग की। जब तक हर प्रश्न का संतोषजनक उत्तर नहीं मिला, भारतीय दल ने प्रक्षेपण को हरी झंडी देने से इनकार कर दिया। नतीजतन 11 जून की निर्धारित लॉन्चिंग रद्द करनी पड़ी और मिशन को 25 जून तक टाल दिया गया।
“रिसाव के साथ उड़ान भरना आत्मघाती होता”
नारायणन ने कहा, “मैं इस क्षेत्र में चार दशक से काम कर रहा हूं और जानता हूं कि रॉकेट में रिसाव के बावजूद उड़ान भरना किस तरह की मुश्किलें और हादसे ला सकता है। यदि भारतीय टीम ने दृढ़ता नहीं दिखाई होती, तो यह मिशन असफल हो सकता था।”
सुरक्षित मिशन, ऐतिहासिक उपलब्धि
आखिरकार तकनीकी खामी को पूरी तरह ठीक करने के बाद 25 जून को फ्लोरिडा से रॉकेट ने उड़ान भरी और 26 जून को अंतरिक्ष यात्री सुरक्षित रूप से आईएसएस पहुंच गए। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला के साथ इस मिशन में अमेरिकी पैगी व्हिटसन, पोलैंड के स्लावोज़ उज़्नान्स्की-विस्नीव्स्की और हंगरी के टिबोर कापू भी शामिल थे। चारों ने 15 जुलाई को सफलतापूर्वक पृथ्वी पर वापसी की।
भारत लौटे शुभांशु शुक्ला
अपनी ऐतिहासिक यात्रा पूरी कर शुभांशु शुक्ला 17 अगस्त की सुबह भारत लौटे, जहां दिल्ली एयरपोर्ट पर उनका भव्य स्वागत हुआ। शुक्ला का यह मिशन न केवल भारत के लिए गर्व का क्षण है, बल्कि इसरो की तकनीकी क्षमता और भारतीय वैज्ञानिकों की दूरदर्शिता का भी प्रमाण है।