नई दिल्ली, रिपोर्ट: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजद और कांग्रेस ने मिलकर वोटर-अधिकार यात्रा शुरू कर दी है — एक ऐसा राजनीतिक अभियान जिसका लक्ष्य RJD को सत्ता वापसी दिलवाना और कांग्रेस की खोई जमीन वापस पकड़ना है। यात्रा के ज़रिये राहुल-तेजस्वी की सार्वजनिक केमिस्ट्री का संदेश基层 कार्यकर्ताओं तक पहुँच रहा है; तेजस्वी ने राहुल को अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया है, तो बिहार कांग्रेस अध्यक्ष ने तेजस्वी को पार्टी की ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए उनके सीएम उम्मीदवार होने का संकेत दिया है।
तीनों दलों में पहले से बनी सहमति
यात्रा शुरू होने से पहले महागठबंधन के अंदर तीन मुख्य बातों पर स्पष्ट सहमति बनी है जिसे अब अभियान में लागू किया जा रहा है:
1.एकता का प्रदर्शन — भीतर के छोटे-मोटे मतभेद भुलाकर नेता और कार्यकर्ता एकजुट दिखेंगे; अधिकतम लोगों को जोड़ा जाएगा और जनता को साथ लेकर इस मुद्दे पर व्यापक आंदोलन खड़ा किया जाएगा।
2.संयम और अनुशासन — कार्यकर्ताओं से अपेक्षा है कि वे संयमित रहें; कोई हुड़दंग या आम राहगीरों/मीडिया के लिए परेशानी पैदा न करें। अभियान में हर जत्थे के बीच साधारण कपड़ों में लोग रखकर यह अनुशासन बनवाया जा रहा है।
3.वोट बैंक विस्तार की रणनीति — महागठबंधन राहुल के नेतृत्व में दलित और EBC वोटबैंकों में सेंध लगाने का लक्ष्य रखता है — यूपी के लोकसभा नतीजों की तरह ओबीसी-दलित तालमेल पर जोर देने की योजना है।
केमिस्ट्री निचले पायदान तक जा रही है
गठबंधन की शीर्ष नेतृत्व स्तर पर बनी ‘केमिस्ट्री’ अब मैदान और कैंपस तक दिख रही है। यात्रा में वे चेहरे भी शामिल हैं जो पारंपरिक रूप से RJD से अलग रहे हैं — जैसे कन्हैया कुमार — और कुछ ऐसे लोग भी मौजूद हैं जिनका पहले लालू-गुट से विवाद था। यानी कल के विरोधियों को आज साथ लाकर सबकुछ ठीक दिखाने का संदेश प्रदेश भर में दिया जा रहा है।
राज्यसभा सांसद संजय यादव ने कहा कि “केमिस्ट्री पहले से बढ़िया है; बिहार और देश इन नौजवान नेताओं की तरफ देख रहे हैं।” बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावेरु ने भी कहा कि यात्रा में एक-ही बाइक पर महागठबंधन के झंडे दिखाना इस संघर्ष की साझेदारी का प्रतीक होगा। कांग्रेस के कन्हैया कुमार का कहना है: “पहले सड़क पर जीतेंगे, फिर सीट-बंटवारा होगा।”
बड़े नेताओं और स्टार प्रचारकों की भागीदारी
यात्रा को ऊँचा रखने और क्षेत्रीय असर बढ़ाने के लिए महागठबंधन-कांग्रेस अब बड़े नेताओं को जोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि 28 तारीख को सीमावर्ती इलाक़ों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए अखिलेश यादव का सीतामढ़ी कार्यक्रम तय है। इसके अलावा बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भी कार्यक्रमों पर काम चल रहा है। कांग्रेस-फ्रैंचाइज़ के स्टार प्रचारकों में मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी, सचिन पायलट, रणदीप सुरजेवाला, सिद्धारमैया, डी.के. शिवकुमार और रेवन्त रेड्डी शामिल किए जा रहे हैं।
अभियान के विषय-वस्तु और रणनीतिक फ़ोकस
महागठबंधन की रणनीति में SIR (सिर्फ़/)-प्रक्रिया और वोट-चोरी के साथ साथ स्थानीय और राज्य-स्तरीय मुद्दों को जोड़ना शामिल है — बेरोज़गारी, पलायन, महँगाई, किसान और विकास जैसे मुद्दों पर आंकड़ों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की योजना है। साथ ही ओबीसी-दलित समुच्चय को लक्षित कर यूपी-लोकसभा शैली की चुनावी रणनीति अपनाई जा रही है, ताकि सरकार पर संवैधानिक और सामाजिक सवाल उठाकर मतदाता आधार बढ़ाया जा सके।
निहित संदेश और राजनीतिक परिणाम
वोटर-अधिकार यात्रा का प्रधान संदेश यह है कि महागठबंधन और कांग्रेस एक मंच पर आकर बिहार में संगठनात्मक एकता दिखाना चाहते हैं — न केवल नेताओं के बीच, बल्कि कार्यकर्ता-स्तर पर भी। यदि यह अभियान अनुशासन और व्यापक जनसमर्थन जुटा सके तो राजनीतिक असर स्पष्ट होगा; वहीं अगर दिक्कतें या संगठनात्मक दरारें सामने आईं तो उसका विपरीत असर भी देखने को मिल सकता है।