
भारत में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग ने एक अहम कदम उठाया है। फर्जी मतदान की बढ़ती शिकायतों के मद्देनजर आयोग ने वोटर आईडी को आधार से लिंक करने का निर्णय लिया है। इस निर्णय से डुप्लीकेट और फर्जी मतदाताओं की पहचान कर उन्हें हटाने में मदद मिलेगी, जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बढ़ेगी।
हालांकि, यह कदम नया नहीं है। इससे पहले भी चुनाव आयोग ने इस दिशा में पहल की थी, लेकिन कानूनी अड़चनों के चलते प्रक्रिया रोकनी पड़ी थी। अब एक बार फिर चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से सुझाव मांगते हुए चरणबद्ध तरीके से इस योजना को लागू करने की योजना बनाई है। इस फैसले का उद्देश्य मतदाता सूची को दुरुस्त करना और हर एक मतदाता के एक ही मताधिकार को सुनिश्चित करना है।
फर्जी मतदान पर विपक्ष के आरोप और चुनाव आयोग की पहल
विपक्षी दलों ने हाल के वर्षों में कई बार फर्जी मतदान को लेकर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जैसे बड़े नेताओं ने मतदाता सूची में गड़बड़ी, डुप्लीकेट वोटर आईडी और एक ही व्यक्ति के नाम से कई जगहों पर वोट दर्ज होने की शिकायत की थी।
राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि एक EPIC नंबर (वोटर आईडी नंबर) पर दो-दो वोटर रजिस्टर्ड हैं। यह एक गंभीर मसला है क्योंकि इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। इन आरोपों को देखते हुए चुनाव आयोग ने वोटर आईडी को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया दोबारा शुरू करने का फैसला किया है, जिससे मतदाता सूची को दुरुस्त किया जा सके।
चुनाव आयोग की उच्चस्तरीय बैठक और कानूनी प्रक्रिया
चुनाव आयोग ने मंगलवार को इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह सचिव, विधायी सचिव, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MEITY) के सचिव, और यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) के सीईओ के साथ बैठक की। इस बैठक में तकनीकी और कानूनी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई।
चुनाव आयोग ने साफ किया कि संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार मतदान का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही प्राप्त है, जबकि आधार केवल एक पहचान प्रमाण है। इसलिए, आधार से वोटर आईडी को जोड़ने के लिए सभी आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा।
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता पहचान पत्र को आधार से लिंक करना पूरी तरह से स्वैच्छिक होगा और किसी भी मतदाता को जबरन यह प्रक्रिया अपनाने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
चुनाव आयोग की पुरानी कोशिशें और अदालती चुनौतियां
2015 में पहला प्रयास और सुप्रीम कोर्ट की रोक
चुनाव आयोग ने 2015 में राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण कार्यक्रम (NERPAP) के तहत 30 करोड़ से अधिक वोटर आईडी को आधार से लिंक करने की प्रक्रिया पूरी कर ली थी। लेकिन यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया, और 2018 में अदालत ने इसे रोक दिया।
दरअसल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में करीब 55 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से गायब हो गए थे, जिससे मतदाता पहचान पत्र और आधार लिंकिंग की संवैधानिकता पर सवाल खड़े हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 के फैसले में साफ कहा था कि आधार को सब्सिडी और सरकारी योजनाओं के अलावा किसी भी अन्य सेवा के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता। इस फैसले के बाद चुनाव आयोग को यह अभियान रोकना पड़ा था।
2021 में कानूनी बदलाव और आधार-वोटर आईडी लिंकिंग को नई मंजूरी
साल 2021 में मोदी सरकार ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किया, जिससे वोटर आईडी को आधार से लिंक करने का कानूनी रास्ता साफ हुआ। इसके बाद जून 2022 में सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे लागू करने की अनुमति दी, हालांकि इसे स्वैच्छिक रखा गया।
इसके बाद अप्रैल 2023 में संसद में चर्चा के दौरान केंद्र सरकार ने बताया कि आधार से वोटर आईडी को जोड़ने की प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से की जा रही है और इस पर कोई अंतिम समय सीमा (डेडलाइन) नहीं रखी गई है।
चुनाव आयोग की नई रणनीति और आगे की योजना
मार्च 2025 तक प्रशासनिक बैठकों का दौर
चुनाव आयोग ने मार्च 2025 तक निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ERO), जिला चुनाव अधिकारियों (DEO), और मुख्य चुनाव अधिकारियों (CEO) के साथ बैठकें करने का फैसला किया है।
आयोग ने 30 अप्रैल 2025 तक सभी राष्ट्रीय और राज्य-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से सुझाव मांगे हैं।
इन सुझावों के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
आधार से वोटर आईडी लिंकिंग: चुनौतियां और संभावित विवाद
हालांकि, इस प्रक्रिया के सफलतापूर्वक लागू होने में कई कानूनी और तकनीकी चुनौतियां भी हैं।
- डेटा प्राइवेसी का खतरा
आधार और वोटर आईडी दोनों संवेदनशील डेटा हैं। अगर इन दोनों डेटाबेस को जोड़ा जाता है, तो डेटा लीक और निजता उल्लंघन (Privacy Breach) का बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। चुनाव आयोग को साइबर सिक्योरिटी और डेटा सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा।
- स्वैच्छिक या अनिवार्य?
चुनाव आयोग ने इसे स्वैच्छिक बताया है, लेकिन 2023 में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया कि यह प्रक्रिया जबरन की जा रही है। अगर यह मामला फिर से अदालत में जाता है, तो आधार-वोटर आईडी लिंकिंग पर नई कानूनी अड़चनें आ सकती हैं।
- राजनीतिक दलों का विरोध
राहुल गांधी और ममता बनर्जी जैसे नेता पहले ही इस प्रक्रिया पर सवाल उठा चुके हैं।
कांग्रेस ने मांग की है कि मतदाता सूची को सार्वजनिक किया जाए, जिससे यह सुनिश्चित हो कि किसी भी भारतीय नागरिक को उसके मताधिकार से वंचित न किया जाए।
विपक्षी दलों को आशंका है कि यह प्रक्रिया विशेष समुदायों को टारगेट करने या मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।
आधार से वोटर आईडी लिंकिंग के संभावित फायदे
✔ फर्जी मतदान पर लगाम – एक ही व्यक्ति के नाम से एक से अधिक स्थानों पर वोट डालने की समस्या खत्म होगी।
✔ डुप्लीकेट वोटर आईडी की पहचान – एक ही व्यक्ति के नाम से मल्टीपल वोटर कार्ड होने पर उसे हटाया जा सकेगा।
✔ मतदाता सूची की सफाई – मृतक, फर्जी और स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए जा सकेंगे।
✔ ई-वोटिंग का मार्ग प्रशस्त – भविष्य में डिजिटल मतदान की प्रक्रिया को आसान और सुरक्षित बनाने में मदद मिलेगी।
वोटर आईडी को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया भारतीय चुनावी व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। हालांकि, इसके क्रियान्वयन में डेटा सुरक्षा, निजता और कानूनी बाधाओं को ध्यान में रखना जरूरी होगा।
अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग इस चुनौतीपूर्ण कार्य को कैसे सफलतापूर्वक लागू करता है और क्या यह देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और मजबूत बनाने में कारगर साबित होता है।

VIKAS TRIPATHI
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