
मैहर, मध्य प्रदेश से यह खबर आ रही है जहाँ एक ओर राज्य सरकार धार्मिक मान्यताओं और तीर्थ-यात्रियों की सुगमता के लिए योजनाएं बना रही है, वहीं दूसरी ओर प्रशासन और मंदिर प्रबंधन की लापरवाही और कदाचार से मंदिर की पवित्रता पर सवाल उठ रहे हैं।
माँ शारदा देवी मंदिर, जो धार्मिक श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है, वहां एक सुव्यवस्थित विधि बनाई गई थी जिससे तीर्थ-यात्रियों को शास्त्र सम्मत पूजा-अर्चना की सुविधा मिल सके। यह विधि वेदों और शास्त्रों के अनुसार तैयार की गई थी, ताकि यहाँ आने वाले लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा कर सकें। लेकिन, अब यह स्थिति बदल चुकी है।
खबरों के अनुसार, मंदिर के प्रभारी प्रशासक ने उच्च न्यायालय और कलेक्टर के आदेश का हवाला देते हुए कुछ समय पहले मंदिर में अवैध व्यक्तियों को हटाने की कोशिश की थी, लेकिन फिर कुछ ही घंटों में एक नयी व्यवस्था स्थापित कर दी गई, जिसमें तीर्थ-यात्रियों से अवैध रूप से वसूला गया ‘जजिया कर’ जैसे शुल्क भी जारी रखे गए। इस तरह, मंदिर को एक व्यवसाय में बदल दिया गया है, जहां तीर्थ-यात्रियों से केवल धन वसूला जा रहा है और धार्मिक आस्था की उपेक्षा हो रही है।
यहाँ तक कि, संविधान के तहत दान लेने की प्रक्रिया पर प्रतिबंध होने के बावजूद, मंदिर के प्रशासन ने इसे अनदेखा कर दिया और खुद को एक दुकान की तरह संचालित किया। इस कदाचार के चलते तीर्थ-यात्रियों की धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, लेकिन प्रशासन और मंदिर प्रबंधन इसे नजर अंदाज कर रहे हैं।
इन घटनाओं से यह सवाल उठता है कि क्या शासन के लिए हिंदू धर्म सिर्फ एक चुनावी मुद्दा है? यदि नहीं, तो हिंदू रक्षक दल की सरकार के बावजूद इस तरह के धर्म-विरोधी कृत्य क्यों हो रहे हैं, और इन्हें रोकने के लिए कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं?
ऐसे में, यह जरूरी है कि धार्मिक स्थलों की पवित्रता और तीर्थ-यात्रियों की आस्थाओं की रक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं। अब यह जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि समाज और धार्मिक संस्थाओं की भी है कि वे इस तरह के कदाचार को रोकने के लिए आवाज उठाएं।