जन्मदिन की सुबह, मातम की दोपहर
रविवार की सुबह, ग्रेटर नोएडा में सीता देवी (57) अपने बेटे का जन्मदिन खास बनाने निकली थीं — फूल लेने, बस एक साधारण खुशी के लिए। लेकिन महागुन मार्ट के पास एक डंपर ने उनकी स्कूटी को टक्कर मारी, और चंद सेकंड में ही वह जन्मदिन मातम में बदल गया।
सीता देवी की मौके पर ही मौत हो गई। उनका पति गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती है।
“नो एंट्री” में डंपर की एंट्री — क्या सिर्फ ड्राइवर दोषी है?
जिस वक्त हादसा हुआ, वह सड़क “नो एंट्री ज़ोन” थी — जहां भारी वाहनों का प्रवेश सख़्ती से प्रतिबंधित है। फिर भी डंपर वहाँ दौड़ रहा था। सवाल यह है:
क्या नियम सिर्फ बोर्ड पर होते हैं, सड़क पर नहीं?
क्या ट्रैफिक पुलिस की आंखें केवल जुर्माना वसूलने तक खुली होती हैं?
58 शिकायतें, एक भी कार्रवाई नहीं — क्या ये सिस्टम की साज़िश नहीं?
स्थानीय निवासियों ने बताया कि महागुन मार्ट और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण कार्यालय के आसपास वर्षों से अवैध अतिक्रमण है।
58 बार शिकायत दर्ज कराने के बाद भी न कोई जांच हुई, न कोई कार्रवाई।
हादसे वाली सड़क संकरी हो चुकी थी — विज़िबिलिटी कम, खतरा ज़्यादा।
क्या ये लापरवाही नहीं, सिस्टम का सुनियोजित अपराध है?
जनता का गुस्सा: “ये हादसा नहीं, हत्या है”
हादसे के बाद लोगों ने शव को सड़क पर रखकर प्रदर्शन किया। नारों की गूंज थी:
“ये मर्डर है, एक्सिडेंट नहीं!”
लोगों का आरोप है कि यह “सिस्टम द्वारा प्रायोजित हत्या” है — जहाँ भ्रष्टाचार, प्रशासनिक निष्क्रियता और नियमों की धज्जियां मिलकर आम जनता की जान ले रहे हैं।
सवाल जो अब जवाब मांगते हैं:
नो एंट्री ज़ोन में डंपर कैसे घुसा?
58 शिकायतों के बावजूद ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने चुप्पी क्यों साधी?
अतिक्रमण हटाने की ज़िम्मेदारी किसकी है और वह अब तक क्या कर रहे हैं?
@myogiadityanath जी नो एंट्री में दौड़ता डंपर व सिस्टम की चुप्पी
बेटे के जन्मदिन पर फूल लेने निकली माँ की मौत
डंपर अकेला दोषी नहीं
58शिकायतों के बाद भी चुप @OfficialGNIDA ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण भी जिम्मेदार है।
ये हादसा नहीं,व्यवस्था की हत्या है#GreaterNoida #NoEntryDeath pic.twitter.com/37sINDsK5R
— PARDAPHAAS NEWS (@pardaphaas) July 14, 2025
यह सिर्फ सीता देवी की नहीं, हम सबकी कहानी है
यह मौत हमें याद दिलाती है कि जब सिस्टम सोता है, तो सड़क पर खून बहता है।
सीता देवी सिर्फ एक महिला नहीं थीं — वो एक मां थीं, एक पत्नी थीं, एक नागरिक थीं। और अगर सिस्टम की आंखें अब भी नहीं खुलीं, तो अगली बार कोई और मां, कोई और परिवार उजड़ जाएगा।
यह एक सड़क हादसा नहीं — “व्यवस्था की क्रूर असफलता” है।
🛑अब समय है जवाबदेही तय करने का।
🛑अब वक्त है कि अधिकारियों से सिर्फ बयान नहीं, कार्यवाही ली जाए।
🛑नहीं तो सीता देवी जैसी मौतें, इस शहर का स्थायी दुर्भाग्य बन जाएंगी।