
कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद चर्चा में आए CRPF जवान मुनीर अहमद को बल से बर्खास्त कर दिया गया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने पाकिस्तानी महिला मेनल खान से वीडियो कॉल पर शादी की, और बिना किसी जानकारी के उसे भारत में शरण दी। CRPF ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानते हुए ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ के तहत तुरंत बर्खास्ती की कार्रवाई की।
मुनीर ने गलती की, सज़ा मिल गई — लेकिन सिमा हैदर…?
अब सवाल यह उठता है कि क्या ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति सभी पर समान रूप से लागू होती है?
एक जवान को सिर्फ इस कारण नौकरी से हाथ धोना पड़ा कि उसने नियमों का उल्लंघन कर पाकिस्तानी नागरिक को भारत में ठहराया। लेकिन दूसरी तरफ, सिमा हैदर, जो अवैध रूप से पाकिस्तान से भारत आई, नोएडा में रह रही है, शादी कर चुकी है और अब तक किसी कड़ी कार्रवाई का सामना नहीं कर रही।
क्या एक सैनिक के लिए नियम अलग और एक आम नागरिक (या राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामला) के लिए अलग हैं?
सैनिक को सज़ा, घुसपैठिए को सहानुभूति?
मुनीर अहमद की गलती पर सवाल उठाना जायज है, लेकिन उसी संदर्भ में सिमा हैदर जैसे मामले में ढील राष्ट्रीय सुरक्षा के मानकों पर दोहरापन दिखाता है।
यदि CRPF जवान पर कार्रवाई इतनी तेज़ और सख्त हो सकती है, तो सिमा हैदर जैसे मामलों में सरकार का रवैया इतना ढीला क्यों?
एक नज़र दोनों मामलों पर:
पहलू | मुनीर अहमद | सिमा हैदर |
---|---|---|
देश | भारत | पाकिस्तान |
प्रवेश का तरीका | वैध (सेना में कार्यरत) | अवैध घुसपैठ |
शादी | वीडियो कॉल पर पाक महिला से | नोएडा में हिंदू युवक से |
वीज़ा स्थिति | पत्नी का वीज़ा एक्सपायर | बिना वीज़ा भारत में प्रवेश |
सरकार की कार्रवाई | तत्काल बर्खास्त | कोई ठोस कार्रवाई नहीं |
राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर | माना गया खतरा | अनदेखा |
क्या यही है समान न्याय?
यदि सुरक्षा बलों से जुड़े जवानों से नैतिक और संवैधानिक ज़िम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है, तो आम नागरिकों से भी कानून का पालन करवाना उतना ही ज़रूरी है — चाहे मामला सिमा हैदर का हो या कोई और घुसपैठिए का।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह समय है आत्ममंथन का —
क्या ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ पर हमारी नीति सख्ती से एक जैसी है या हालात और मीडिया की लहरों के अनुसार ढलती रहती है?

VIKAS TRIPATHI
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