
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में 12 दिन चले सियासी घमासान के बाद भले ही देवेंद्र फडणवीस ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली हो, लेकिन महायुति में पैदा हुए मतभेदों ने इस समारोह को फीका कर दिया। बीजेपी, एनसीपी (अजित पवार गुट) और शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के गठबंधन ने भले ही विधानसभा चुनाव में 230 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल किया हो, लेकिन सरकार चलाना अब आसान नहीं होगा।
शपथ समारोह में ‘संकट’ की झलक
05 दिसंबर 2024 को महाराष्ट्र में महायुति के तीन प्रमुख नेताओं – देवेंद्र फडणवीस (मुख्यमंत्री), एकनाथ शिंदे (उपमुख्यमंत्री), और अजित पवार (उपमुख्यमंत्री) ने शपथ ली। लेकिन इस शपथ ग्रहण समारोह में न तो पूरी कैबिनेट बनी और न ही कोई उत्साह दिखा। तीनों नेताओं के बीच हुए सत्ता संघर्ष का असर कार्यक्रम पर साफ नजर आया।
सीएम पद पर शिंदे की जिद और बीजेपी की ‘नो’
23 नवंबर को चुनाव नतीजों के बाद से ही सीएम पद को लेकर फडणवीस और शिंदे के बीच खींचतान जारी थी। शिंदे का दावा था कि महायुति को मिली प्रचंड जीत उनके कार्यकाल में हुई, इसलिए सीएम पद उनका हक है। लेकिन बीजेपी ने यह साफ कर दिया कि मुख्यमंत्री पद उनके पास रहेगा। शिंदे ने इसके बाद गृह मंत्रालय की मांग की, लेकिन यहां भी बीजेपी ने उन्हें साफ ‘ना’ कह दिया।
अजित पवार ने भी बढ़ाई मुश्किलें
बीच में अजित पवार ने भी अपनी मांगों की फेहरिस्त लंबी कर दी। 41 सीटों के साथ उनकी भूमिका भी अहम है। तीनों दलों के बीच मांगों और समझौतों का ऐसा दौर चला कि शपथ ग्रहण में केवल तीन लोग ही शामिल हो सके।
महायुति के भीतर बढ़ता ‘महासंकट’
- शिंदे का तर्क: शिंदे का मानना है कि अगर उन्हें सीएम पद से हटाया गया है, तो गृह मंत्रालय उन्हें मिलना चाहिए।
- बीजेपी की मजबूरी: बीजेपी शिंदे को गृह मंत्रालय देने को तैयार नहीं है। अगर शिंदे महायुति से अलग होते हैं, तो अजित पवार के सहारे सरकार बच सकती है, लेकिन इससे पवार की डिमांड बढ़ने का खतरा है।
- शिंदे की रणनीति: शिंदे अपनी पार्टी की कमजोर स्थिति को छिपाकर मजबूत मांगें रख रहे हैं और अब तक इसमें सफल भी हुए हैं।
फडणवीस के लिए चुनौतियां
देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार सीएम तो बन गए हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे और अजित पवार जैसे ताकतवर नेताओं के साथ सरकार चलाना आसान नहीं होगा। फिलहाल मंत्रिमंडल का गठन बाकी है, और असली सियासी घमासान अभी बाकी है।
आगे की राह कठिन
महाराष्ट्र की राजनीति में यह स्पष्ट हो गया है कि सत्ता में भागीदारी ही सियासी वफादारी तय करती है। अब देखना होगा कि क्या बीजेपी मंत्रिमंडल बंटवारे में शिंदे और पवार को उसी सख्ती से संभाल पाएगी जैसे उसने सीएम पद के चयन में किया, या इस बार झुकने की बारी बीजेपी की है?