जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) नेता ओमर अब्दुल्ला की सरकार से कांग्रेस ने दूर रहने का फैसला किया है। इस घटनाक्रम के पीछे मुख्य कारण कांग्रेस की दो मंत्रालयों की मांग थी, जबकि उसे केवल एक की पेशकश की गई थी। कांग्रेस के इस कदम ने राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है, जहां गठबंधन सहयोगियों के बीच तालमेल में दरारें उभरती दिख रही हैं।
कांग्रेस की नाराजगी और संभावित समाधान की कोशिशें
कांग्रेस और NC के शीर्ष नेता इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश करेंगे, लेकिन फिलहाल कांग्रेस ने सरकार से बाहर रहने का निर्णय लिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कई विपक्षी नेता शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित थे, लेकिन इस मुद्दे पर अभी तक अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
साथ ही, समाजवादी पार्टी (SP) नेता अखिलेश यादव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के प्रकाश करात, CPI के डी राजा, और डीएमके सांसद कनिमोझी भी इस शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित थे।
जम्मू-कश्मीर में पहली निर्वाचित सरकार: विशेष दर्जे की बहाली के बाद
ओमर अब्दुल्ला, 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के निरस्तीकरण और इसे केंद्रशासित प्रदेश में बदलने के बाद, मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले पहले नेता होंगे। इस शपथ ग्रहण समारोह में आठ मंत्रियों के शपथ लेने की उम्मीद थी, लेकिन कांग्रेस के बाहर रहने के बाद केवल छह मंत्री शपथ लेंगे।
कांग्रेस की ओर से गुलाम अहमद मीर और जम्मू-कश्मीर कांग्रेस अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा मंत्री पद के प्रमुख दावेदारों में शामिल थे, लेकिन कांग्रेस के सरकार से बाहर रहने के निर्णय ने समीकरण बदल दिए।
कांग्रेस की चुनौतियां और सहयोगी दलों का बढ़ता दबाव
कांग्रेस, हाल के चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद, अपने सहयोगी दलों के बढ़ते दबाव का सामना कर रही है। हरियाणा विधानसभा चुनावों में अप्रत्याशित हार के बाद, जहां बीजेपी ने 90 में से 48 सीटें जीतीं और कांग्रेस सिर्फ 37 पर सिमट गई, जम्मू-कश्मीर में भी पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा। कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर की 39 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल 6 सीटें ही जीत पाई।
यह खराब प्रदर्शन न केवल कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है, बल्कि इसके सहयोगियों को भी नाराज कर रहा है। शिवसेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे), तृणमूल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और NC जैसे दलों ने कांग्रेस को आत्ममंथन करने की सलाह दी है और चेताया है कि वह अपने सहयोगियों को हाशिए पर न डाले।
आगे की राह: गठबंधन की चुनौती
कांग्रेस के सामने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कई चुनौतियां हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने अपने 10 विधानसभा उपचुनावों में से 6 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जिससे कांग्रेस के लिए गठबंधन में कठिनाइयाँ और बढ़ सकती हैं। इसके साथ ही, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ किसी गठबंधन से इनकार कर दिया है, जिससे कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाए रखने की चुनौती और बढ़ गई है।
VIKAS TRIPATHI
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