Wednesday, October 8, 2025
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“देवलोक वनों” से नदी-इकोसिस्टम तक: सीएम डॉ. मोहन यादव ने वन विभाग के समिक्षा सत्र में दी सघन दृष्टि

भोपाल — मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री निवास समत्व भवन में वन विभाग की गतिविधियों की समीक्षा करते हुए कहा कि प्रदेश के वनांचल में कई ऐसे पारंपरिक रूप से संरक्षित क्षेत्र हैं जिन्हें स्थानीय समुदायों की आस्था के आधार पर “देवलोक वने” के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने नदियों के किनारों पर पांच-पांच किलोमीटर के क्षेत्‍रों में व्यापक पौधारोपण तेज करने, जल-जीवों की सुरक्षा और वन ग्रामों के संविदान संबंधी सुधारों के निर्देश दिए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आस्था-आधारित संरक्षित स्थलों का महत्व सिर्फ आध्यात्मिक नहीं बल्कि जैव विविधता संरक्षण, पारिस्थिकी संतुलन और सामुदायिक एकता में भी है। इसलिए इन स्थानों का संवेदनशील और वैज्ञानिक ढंग से संवर्धन आवश्यक है ताकि सांस्कृतिक विरासत बचते हुए स्थानीय जीवनयापन भी सुनिश्चित किया जा सके।

डॉ. यादव ने नदियों के किनारे के अतिक्रमण हटाने में स्थानीय समुदायों को सहभागी बनाने पर ज़ोर दिया और पौधारोपण में औषधीय व उपयोगी फसलों को प्राथमिकता देने को कहा, जिससे स्थानीय स्तर पर आय-सृजन के नए रास्ते खुलें। उन्होंने इंदौर–उज्जैन–देवास के मेट्रोपोलिटन विकास के संदर्भ में क्षिप्रा नदी के संरक्षण के लिये विशेष योजना बनवाने के भी निर्देश दिये।

जल-जीव संरक्षण पर भी मुख्यमंत्री ने स्पष्ट निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि मगरमच्छ, घड़ियाल और कछुओं का स्वस्थ इकोसिस्टम नदियों की दुर्दशा से बचाने में अहम रोल निभाता है और उन नदियों में जहाँ इन जीवों की संख्या अधिक है, वहां से उन्हें सुरक्षित तरीके से अन्य उपयुक्त जल संरचनाओं में स्थानांतरित किया जाए — इस प्रक्रिया की शुरुआत नर्मदा और तवा नदियों से की जाए। (घड़ियाल व मगरमच्छ संरक्षण को लेकर हाल के सुझाव और योजनाओं पर भी विचार चल रहा है)।

बैठक में प्रशासनिक एवं सामाजिक-आर्थिक पहलों पर भी सहमति बनी— वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में परिवर्तित करने, लघु वन उपज (Minor Forest Produce) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और तेंदूपत्ता संग्राहकों को बोनस मिलने जैसी नीतियों को आगे बढ़ाने पर चर्चा हुई। इससे आदिवासी व वन-आश्रित समुदायों की आय में वृद्धि और उनकी सामाजिक सुरक्षा को मजबूती मिलेगी — सरकार ने इससे जुड़े क्रियान्वयन-ढांचे पर शीघ्र रिपोर्ट मांगी है।

ये पहल मौजूदा वृक्षारोपण मुहिमों के परिप्रेक्ष्य में भी हैं। प्रदेश सरकार पहले भी बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण योजनाएँ चला चुकी है और राज्यस्तरीय अभियान के तहत व्यापक पौधारोपण को और तेज़ी से लागू करने का लक्ष्य रखा गया है — अब इसके तहत विशेषकर नदियों और जल संरचनाओं के आसपास हरित पट्टियाँ विकसित करने पर ज़ोर दिया जाएगा।

सीएम ने अधिकारियों को स्पष्ट और पारदर्शी स्कूल-किशन (survey) कराने, वन ग्रामों के लाभार्थियों की सूची अद्यतन करने तथा जिन पात्रों को जमीन के पट्टे नहीं मिले हैं उन्हें प्राथमिकता से पट्टे देने के निर्देश भी दिये। बैठक में अपर मुख्य सचिव वन अशोक वर्णवाल तथा प्रधान मुख्य वन संरक्षक व वनबल प्रमुख समेत वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।

क्या बदल सकता है:

नदियों के किनारों पर पांच-किलोमीटर वृक्षारोपण से कटाव कम होगा, भूजल सुधरेगा और स्थानीय पारिस्थितिकी मजबूत होगी — बशर्ते पौधारोपण के बाद देखभाल और दीर्घकालिक रखरखाव की व्यवस्था हो।

मगरमच्छ/घड़ियाल जैसे प्रजातियों का वैज्ञानिक स्थानांतरण संवेदनशील योजना और विशेषज्ञता मांगता है — सफल हुआ तो यह जल-इकोसिस्टम को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करेगा।

तेंदूपत्ता बोनस और MFP (Minor Forest Produce) के बेहतर दाम वन-आश्रित समुदायों की आय स्थिर करने में प्रभावी साबित हो सकते हैं।

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