
नजूल की जमीन को भूमाफिया से बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। कानपुर में प्रदूषण से जूझते शहर को राहत देने के लिए नजूल की जमीन पर सिटी फॉरेस्ट और जरूरतमंदों के लिए आवास बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है। 80 हजार करोड़ रुपये की अनुमानित कीमत वाली इन जमीनों के लिए औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (बीआईएफआर) सहित कई अन्य मोर्चों पर सरकार अपनी पैरवी कर रही है।
नजूल की जमीन की वर्तमान स्थिति
कानपुर के सिविल लाइंस और वीआईपी रोड का अधिकांश हिस्सा नजूल की जमीन पर है। इन पॉश और महंगे इलाकों में स्थित बंद मिलें भी नजूल की जमीन पर बनी हुई हैं। खंडहर पड़ी इन मिलों के परिसर में बड़ी संख्या में लोग रह रहे हैं, और कई बाजार नजूल की जमीन पर काबिज हैं। ब्रिटिश राज में स्थापित ये मिलें अब बंद हो चुकी हैं और उनके मामले बीआईएफआर में विचाराधीन हैं।
मिलों की जमीन का पुनः उपयोग
इन बंद मिलों की जमीनें नीलामी में लगाई जा रही थीं, जिस पर आवास विभाग ने आपत्ति दर्ज कराई। विभाग ने कहा कि ये जमीनें मिल चलाने के लिए दी गई थीं, जो अब बंद हो चुकी हैं और ये सरकारी जमीन है। इसलिए, इन जमीनों को वापस लेने की प्रक्रिया चल रही है। इन जमीनों की कीमत लगभग 80 हजार करोड़ रुपये आंकी गई है।
कानपुर को मिलेगी नई सौगात
इन मिलों की जमीन वापस लेकर कानपुर के लोगों को प्रदूषण से राहत देने का प्रस्ताव है। मिलों में रहने वाले गरीब और जरूरतमंद लोगों को उतना हिस्सा उन्हें दिया जाएगा। इसके अलावा, कानपुर में पार्किंग की समस्या को हल करने के लिए अंडरग्राउंड या बहुमंजिला पार्किंग बनाई जाएगी। जरूरतमंदों के लिए आवास और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का भी प्रस्ताव है। शेष जमीन पर सिटी फॉरेस्ट विकसित किए जाएंगे, जो एक तरफ पर्यटन का केंद्र बनेंगे और दूसरी तरफ कानपुर की हवा को स्वच्छ बनाने में सहायक होंगे।
नजूल की जमीन का रिकॉर्ड और फ्री होल्ड आवेदन
भूमाफियाओं से नजूल की जमीन को बचाने के लिए, प्रदेश सरकार ने कानपुर में फ्री होल्ड से जुड़े आवेदनों को रोक दिया है। 1992 में लाई गई पालिसी से फ्री होल्ड का खेल शुरू हुआ, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा है कि मूल पालिसी में किसी जमीन को फ्री होल्ड कराने का प्रावधान नहीं था। बाद में पालिसी में कई संशोधन हुए, जिससे यह विकृत हो गई और जरूरतमंदों की जगह भूमाफियाओं के हित की बन गई।