
China’s Mega Dam on Brahmaputra: नई दिल्ली: चीन द्वारा तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में यरलुंग त्सांगपो (भारत में ब्रह्मपुत्र) नदी के निचले हिस्से में एक मेगा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की घोषणा के बाद भारत सरकार सतर्क हो गई है। इस परियोजना से भारत और बांग्लादेश की जल आपूर्ति पर गंभीर असर पड़ सकता है, जिससे सामरिक और पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न होने की आशंका है। विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में कहा कि भारत सरकार ने चीन से स्पष्ट रूप से आग्रह किया है कि उसकी कोई भी जल परियोजना निचले इलाकों के हितों को नुकसान न पहुंचाए।
विदेश सचिव ने बीजिंग में उठाया मुद्दा
विदेश मंत्री ने जानकारी दी कि विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बीजिंग यात्रा के दौरान चीन के सामने भारत की चिंताओं को रखा। इस दौरान दोनों देशों ने सीमा पार नदियों के जल प्रवाह से संबंधित डेटा साझा करने और जल संसाधनों के मुद्दे पर विशेषज्ञों की बैठक आयोजित करने पर सहमति व्यक्त की।
ब्रह्मपुत्र पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना
चीन ने हाल ही में घोषणा की कि वह ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत बांध बनाने जा रहा है। यह परियोजना तिब्बत के संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में स्थित होगी, जो भारत की सीमा के बेहद करीब है। इस परियोजना के चलते पर्यावरणीय क्षति, जल प्रवाह में बदलाव और भूकंपीय खतरे की आशंका बढ़ गई है।
भारत की रणनीति और सतर्कता
सरकार ने साफ कर दिया है कि वह ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़े हर घटनाक्रम पर कड़ी नजर बनाए हुए है। भारत और चीन के बीच सीमा पार नदियों से संबंधित मुद्दों पर बातचीत के लिए 2006 में स्थापित एक विशेष संस्थागत तंत्र पहले से मौजूद है, जिसके माध्यम से इस मुद्दे पर चर्चा की जा रही है।
पर्यावरण और राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर
➡️ पर्यावरणीय खतरा – प्रस्तावित बांध भूगर्भीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र में बनाया जा रहा है, जहां भूकंप का खतरा अधिक रहता है।
➡️ जल प्रवाह पर असर – अगर चीन जल प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो इसका असर असम और अरुणाचल प्रदेश के नदी तटवर्ती इलाकों पर पड़ सकता है।
➡️ सामरिक चुनौती – यह बांध चीन को रणनीतिक लाभ देगा, जिससे भारत की जल सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
भारत का सख्त रुख: चीन से जारी रहेगी वार्ता
भारत सरकार ने साफ किया कि वह सीमा पार जल संसाधनों के मुद्दे पर चीन के साथ वार्ता जारी रखेगी और अपने हितों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेगी। चीन की यह परियोजना महज एक जलविद्युत परियोजना नहीं बल्कि एक भू-राजनीतिक चाल भी मानी जा रही है, जिससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की जल आपूर्ति और पारिस्थितिकी तंत्र को गहरा नुकसान हो सकता है।
अब आगे क्या?
अब देखना होगा कि भारत की आपत्ति के बाद चीन अपने इस मेगा प्रोजेक्ट पर क्या रुख अपनाता है। भारत की रणनीति स्पष्ट है – सीमा पार जल प्रबंधन पर प्रभावी वार्ता और कूटनीतिक दबाव के जरिए अपने जल संसाधनों की रक्षा।
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