
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने “IPS बनाम नेता” के बहुचर्चित ड्रामे का एक और अध्याय खत्म करते हुए आईपीएस अधिकारी इल्मा अफरोज की बहाली की मांग वाली याचिका को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने अफरोज के तबादले पर लगी रोक हटाते हुए “प्रशासनिक फैसलों में अनावश्यक दखलअंदाजी बंद करो” वाला संदेश भी दे दिया।
दरअसल, बद्दी की पूर्व एसपी अफरोज और कांग्रेस विधायक राम कुमार चौधरी के बीच “कौन बड़ा” की रस्साकशी चल रही थी। अफरोज ने अपने कार्यकाल के दौरान अवैध खनन और माफिया के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई की, जिससे स्थानीय नेताओं और उनके ‘प्रिय’ कारोबारियों को काफी असुविधा होने लगी। और फिर वही हुआ, जो आमतौर पर होता है – एक ईमानदार अफसर की पोस्टिंग बदल दी गई!
नेता बोले – “मुझे नहीं पता, कुछ नहीं पता!”
चौंकाने वाली बात यह थी कि अफरोज के छुट्टी पर जाने और तबादले का ‘नेता जी’ से कोई लेना-देना नहीं था! (बिल्कुल वैसे ही जैसे बरसात में पानी गिरने का किसी बादल से लेना-देना नहीं होता)। विधायक राम कुमार चौधरी ने दावा किया कि “हम तो बस देख ही रहे थे, सिस्टम ने खुद ही अफरोज को हटा दिया!”
यही नहीं, चौधरी साहब ने अदालत में जनहित याचिका डालकर खुद को जनता का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की कोशिश भी कर डाली। याचिका में उन्होंने कहा कि “IPS अफरोज जब तक बद्दी में थीं, तब तक इलाके में अवैध खनन, ड्रग तस्करी और संगठित अपराध पर लगाम लगी हुई थी”। लेकिन जैसे ही उनका ट्रांसफर हुआ, हालात फिर पुराने ढर्रे पर आ गए। अब सोचने वाली बात यह है कि अगर अफरोज के हटने से अपराधी फिर से मस्ती में आ गए, तो हटवाने में दिलचस्पी किसकी थी?
खनन माफिया VS कर्तव्यपरायणता – किसकी जीत?
चौधरी साहब ने अदालत में यह भी कहा कि “बद्दी में 43 अवैध खनन क्रशर धड़ल्ले से चल रहे थे, और पुलिस व प्रशासन इनसे मिलीभगत किए बैठा था”। लेकिन अफरोज के आते ही इनका धंधा मंदा पड़ गया। जाहिर सी बात है, अगर किसी का ‘रोजगार’ ठप हो जाए, तो वह शिकायत तो करेगा ही!
ऐसे में सवाल उठता है – अगर अफरोज अवैध धंधे बंद करवा रही थीं, तो उनका ट्रांसफर क्यों हुआ? और अगर उनका ट्रांसफर जरूरी था, तो अब खनन माफिया को कौन रोकेगा? या फिर प्रशासन ने मान लिया है कि “समस्या अगर दिखे ही नहीं, तो हल करने की जरूरत भी नहीं रहती!”
कोर्ट ने क्या कहा?
हाई कोर्ट ने सुच्चा राम नाम के एक जागरूक किसान की याचिका को खारिज करते हुए साफ कह दिया कि “अफसरशाही और राजनीति के बीच कौन जीतेगा, इसका फैसला अदालत नहीं करेगी!” और अफरोज के ट्रांसफर को पूरी तरह सही ठहरा दिया।
कोर्ट ने राज्य सरकार से “खनन, अपराध और प्रशासन” के बारे में जवाब मांगा है, जिसे 4 जनवरी तक देना होगा। लेकिन इस जवाब में क्या होगा, इसका अंदाजा सबको है –
1. “हम पूरी पारदर्शिता से काम कर रहे हैं”
2. “हमारी सरकार अपराध के खिलाफ सख्त है”
3. “सब कुछ नियमों के अनुसार हो रहा है”
और सबसे क्लासिक जवाब –
- “हम जांच करवा रहे हैं!”
तो क्या सब कुछ पहले जैसा रहेगा?
अब बद्दी में नया एसपी तैनात हो चुका है, खनन माफिया अपने पुराने जोश में लौट चुके हैं, और नेता जी अपने काम में व्यस्त हो चुके हैं। उधर, आईपीएस अफरोज फिलहाल शिमला के पुलिस मुख्यालय में “सोच-विचार” कर रही हैं कि मेहनत करने से ज्यादा जरूरी कौन सा हुनर सीखना चाहिए!”
तो कुल मिलाकर, “सिस्टम वही है, लोग वही हैं, और खेल भी वही!” बस एक ईमानदार अफसर को जगह बदलनी पड़ी, बाकी सब पहले जैसा ही चल रहा है!

VIKAS TRIPATHI
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