
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में सियासी उथल-पुथल थमने का नाम नहीं ले रही है। पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपने उत्तराधिकारी घोषित किए गए भतीजे आकाश आनंद को सभी पदों से हटा दिया है। इसके साथ ही, उनके ससुर और बसपा के कद्दावर नेता अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर कर दिया गया है। मायावती के इस फैसले ने पार्टी के अंदर गुटबाजी और राजनीतिक साजिशों की नई परतें खोल दी हैं।
बसपा में सत्ता संतुलन का नया अध्याय
बसपा के भीतर लंबे समय से चल रहे सत्ता संघर्ष में अब एक बड़ा मोड़ आ गया है। मायावती ने न केवल आकाश आनंद को सियासी हाशिए पर धकेल दिया, बल्कि अपने भाई आनंद कुमार और रामजी गौतम को राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर बनाकर यह संकेत दिया कि अब बसपा की कमान उनके भरोसेमंद लोगों के हाथों में होगी।
बैठकों में जिस कुर्सी पर पहले आकाश आनंद बैठते थे, अब वहां रामजी गौतम बैठे नजर आए। मायावती ने सात साल तक आकाश को अपनी राजनीतिक छत्रछाया में रखा, उन्हें पार्टी के अहम पदों तक पहुंचाया, यहां तक कि उत्तराधिकारी घोषित किया, लेकिन अचानक ही उन्हें संगठन से किनारे कर दिया गया। इस घटनाक्रम के पीछे की कहानी में अशोक सिद्धार्थ और रामजी गौतम के बीच की सियासी जंग अहम भूमिका निभाती दिख रही है।
अशोक सिद्धार्थ: बसपा का नया ‘खलनायक’?
अशोक सिद्धार्थ मायावती के बेहद करीबी नेताओं में से एक थे। लेकिन समय के साथ उनके प्रति मायावती का रुख बदलता गया। उनकी बेटी प्रज्ञा सिद्धार्थ की शादी जब आकाश आनंद से हुई, तो यह रिश्ता राजनीति में भी मजबूती का संकेत माना गया। पर मायावती को यह स्वीकार्य नहीं हुआ कि अशोक सिद्धार्थ पार्टी पर दबदबा बनाए रखें। उन पर गुटबाजी करने और पार्टी को अंदरूनी तौर पर कमजोर करने के आरोप लगे।
मायावती के मुताबिक, अशोक सिद्धार्थ ने पार्टी को दो गुटों में बांट दिया था, जिसका असर बसपा के जनाधार पर पड़ रहा था। यह भी कहा गया कि उन्होंने 2024 के चुनाव से पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाओं पर चर्चा की थी, जो मायावती को नागवार गुजरी।
अशोक सिद्धार्थ का कद कम करने की शुरुआत तब हुई, जब उनका राज्यसभा कार्यकाल खत्म हुआ और मायावती ने उनकी जगह रामजी गौतम को वहां भेज दिया। इसके बाद से दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक टकराव खुलकर सामने आने लगा।
रामजी गौतम: पर्दे के पीछे से नंबर दो तक का सफर
रामजी गौतम ने धीरे-धीरे बसपा में अपनी सियासी पकड़ मजबूत की। एक समय वे अशोक सिद्धार्थ के सहयोगी थे, लेकिन जैसे-जैसे उनकी महत्वाकांक्षा बढ़ी, उन्होंने अपना अलग खेमा बना लिया। मायावती का विश्वास जीतने में वे सफल रहे और दक्षिण भारत में पार्टी को संगठित करने का जिम्मा मिला।
आकाश आनंद के बढ़ते कद से रामजी गौतम असहज थे। उन्हें यह मंजूर नहीं था कि मायावती की राजनीतिक विरासत किसी और के हाथों में चली जाए। जब 2023 में आकाश को पार्टी के कई राज्यों की जिम्मेदारी दी गई, तो यह संघर्ष और गहरा हो गया। टिकट वितरण से लेकर संगठनात्मक फैसलों तक, दोनों नेताओं के बीच टकराव बढ़ता गया।
रामजी गौतम ने इस लड़ाई में बेहद सूझबूझ से खेला। उन्होंने आकाश आनंद को सीधे निशाना बनाने के बजाय, अशोक सिद्धार्थ की कमियों को मायावती के सामने रखा। पार्टी में गुटबाजी, अनुशासनहीनता और शक्ति प्रदर्शन के आरोपों को आधार बनाकर, उन्होंने अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर करवाने में अहम भूमिका निभाई।
अशोक सिद्धार्थ के बहाने आकाश आनंद को किनारे किया गया?
रामजी गौतम जानते थे कि मायावती सीधे तौर पर आकाश आनंद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगी। इसलिए उन्होंने अशोक सिद्धार्थ के खिलाफ सबूत इकट्ठा किए और उन्हें पार्टी से बाहर करवाया। मायावती ने इस फैसले के बाद आकाश आनंद को भी धीरे-धीरे पार्टी के सभी पदों से हटा दिया।
सूत्रों के मुताबिक, अशोक सिद्धार्थ के बेटे की शादी एक बड़ी वजह बनी। यह शादी एक शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखी गई, जिसमें पार्टी के तमाम नेताओं को बुलाने के बजाय सिर्फ चुनिंदा लोगों को ही न्योता दिया गया। इस कार्यक्रम ने मायावती की नाराजगी को और बढ़ा दिया।
मायावती ने भाई आनंद कुमार और रामजी गौतम पर जताया भरोसा
आकाश आनंद की विदाई के साथ ही मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार और रामजी गौतम को बसपा का नया चेहरा बना दिया है। आनंद कुमार को संगठनात्मक कामों की जिम्मेदारी दी गई है, जबकि रामजी गौतम को जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत करने का कार्य सौंपा गया है।
मायावती के इस फैसले के बाद रामजी गौतम अब बसपा में नंबर दो की स्थिति में आ चुके हैं। मायावती ने कहा कि वे पूरे देश में घूमकर पार्टी के जनाधार को बढ़ाने का काम करेंगे और समय-समय पर दिए गए निर्देशों को लागू करवाएंगे।
क्या आकाश आनंद की राजनीति खत्म हो गई?
बसपा की राजनीति में जो लोग मायावती के करीबी माने जाते हैं, वे भी अचानक किनारे लगा दिए जाते हैं। आकाश आनंद का हश्र भी कुछ ऐसा ही हुआ। सात साल तक मायावती की निगरानी में सीखने के बावजूद वे पार्टी में अपनी स्थायी जगह नहीं बना सके।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या आकाश आनंद पूरी तरह राजनीति से बाहर हो जाएंगे या फिर किसी और भूमिका में वापस लौटेंगे? फिलहाल, बसपा की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि उन्हें दोबारा कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी।
बसपा में ‘एक युग का अंत’ या ‘नई शुरुआत’?
मायावती के इस फैसले ने बसपा की आंतरिक राजनीति को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। जहां एक तरफ आकाश आनंद और अशोक सिद्धार्थ की सियासी पारी लगभग खत्म हो गई दिखती है, वहीं दूसरी तरफ रामजी गौतम और आनंद कुमार पार्टी के नए केंद्र में आ चुके हैं।
अब देखने वाली बात यह होगी कि मायावती का यह कदम बसपा को नई ऊर्जा देगा या फिर पार्टी के भीतर और असंतोष को जन्म देगा। लेकिन इतना तय है कि बसपा की राजनीति में यह एक बड़ा मोड़ है, जो भविष्य में पार्टी की दिशा और दशा तय करेगा।