ड्यूक-एनयूएस, सिंगापुर में कुणाल ने सफलतापूर्वक पूरी की पीएचडी थीसिस डिफेंस —मैक्रोफेज गतिविधियों और जेनेटिक विश्लेषण के ज़रिए CKD के इलाज की नई राह खोलने का दावा
सिंगापुर / प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) | 9 जुलाई 2025 — उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के निवासी और युवा वैज्ञानिक कुणाल मिश्रा ने चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में एक अहम उपलब्धि दर्ज की है। ड्यूक-एनयूएस मेडिकल स्कूल, सिंगापुर में उन्होंने अपने डॉक्टरेट शोध का सफलतापूर्वक थीसिस डिफेंस किया। उनका शोध क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ (CKD) के इम्यूनोलॉजिकल और जेनेटिक पहलुओं को उजागर करता है, जो भविष्य में इस गंभीर बीमारी के इलाज की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
शोध का विषय और महत्त्व
कुणाल मिश्रा का शोध विषय था:
“Systems Biology to Study Macrophages in Chronic Kidney Disease”
इस शोध में उन्होंने उन मैक्रोफेज कोशिकाओं की भूमिका को उजागर किया, जो CKD की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। SPP1+ नामक मैक्रोफेज की दो अवस्थाओं — मेटाबॉलिक और सूजनकारी — को अलग करते हुए उन्होंने बताया कि ये कोशिकाएं बीमारी के शुरुआती और गंभीर चरणों में किस प्रकार सक्रिय रहती हैं।
जेनेटिक खोज और विश्लेषण
शोध के दौरान कुणाल ने विशेष माउस मॉडल्स पर अध्ययन कर 28 जेनेटिक लोसी (loci) और 426 जीन की पहचान की, जो एल्ब्यूमिन्यूरिया और मैक्रोफेज सक्रियता से जुड़े हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इन गतिविधियों के पीछे गहरे जेनेटिक कंट्रोल सेंटर हैं, जो इंसानों और माउस दोनों में मौजूद हैं — एक संभावित थेरेप्यूटिक टारगेट के रूप में।
थीसिस डिफेंस और वैज्ञानिक समुदाय की प्रतिक्रिया
यह थीसिस डिफेंस 9 जुलाई को ड्यूक-एनयूएस के एम्फीथियेटर में आयोजित की गई, जिसमें वैश्विक शोधकर्ता, फैकल्टी और डॉक्टोरल स्टूडेंट्स ने भाग लिया। कुणाल के शोध निर्देशक एसोसिएट प्रोफेसर जैक्व्स बेहमोआरस थे, जो इम्यूनोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी माने जाते हैं।
बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि!
कुणाल मिश्रा (Duke-NUS) ने CKD पर शोध के ज़रिए मैक्रोफेजेस की भूमिका और जेनेटिक आधार को गहराई से उजागर किया।
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— PARDAPHAAS NEWS (@pardaphaas) July 9, 2025
प्रतापगढ़ से सिंगापुर तक का सफर
कुणाल मिश्रा का यह सफर न केवल अकादमिक उत्कृष्टता का प्रतीक है, बल्कि उत्तर प्रदेश के छोटे शहर प्रतापगढ़ से निकलकर अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में अपनी पहचान बनाने की प्रेरणादायक कहानी भी है। सीमित संसाधनों से शुरू होकर, उन्होंने यह दिखा दिया कि दृढ़ संकल्प, वैज्ञानिक सोच और वैश्विक दृष्टिकोण के बल पर कोई भी युवा दुनिया में बदलाव ला सकता है।
कुणाल मिश्रा ने क्या कहा?
“मैं इस सफलता को अपने माता-पिता, अपने गांव प्रतापगढ़ और अपने देश को समर्पित करता हूं। मेरी कोशिश रही है कि मेरा शोध वास्तविक मरीजों के जीवन में बदलाव ला सके — और यही मेरे काम का असली इनाम होगा।”
कुणाल मिश्रा की यह उपलब्धि एक युवा भारतीय वैज्ञानिक की कहानी है, जिसने वैश्विक स्तर पर भारतीय अनुसंधान की छवि को मजबूती दी है। उनका शोध CKD जैसी जटिल बीमारी को समझने और नए इलाज के मार्ग खोलने में निर्णायक साबित हो सकता है।