
Chhatrapati Sambhaji History “Chhava”: विकी कौशल की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘छावा’ से एक बार फिर वीर मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज की गौरवशाली और बलिदानपूर्ण कहानी चर्चा में है। यह फिल्म सिर्फ एक ऐतिहासिक युद्धगाथा नहीं बल्कि उस संघर्ष और वीरता की कहानी है, जिसने मराठा साम्राज्य को मज़बूती दी और मुगलों के खिलाफ युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शिवाजी के बाद संभाजी का संघर्ष और सत्ता संभालना
छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद 3 अप्रैल 1680 को मराठा साम्राज्य में सत्ता को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा हो गई थी। शिवाजी ने न तो कोई उत्तराधिकारी नियुक्त किया था और न ही कोई वसीयत छोड़ी थी। ऐसे में पारिवारिक षड्यंत्रों के बीच से निकलकर संभाजी महाराज ने 20 जुलाई 1680 को सत्ता संभाली।
विकी कौशल की फिल्म ‘छावा’ में यही संघर्ष दिखाया जाएगा कि किस तरह शिवाजी महाराज के बाद संभाजी ने न सिर्फ सत्ता को मजबूत किया बल्कि मुगलों, पुर्तगालियों और निजाम के खिलाफ तीन मोर्चों पर लड़ाई लड़ी। फिल्म में विकी कौशल संभाजी महाराज की भूमिका में दिखेंगे और उनके संघर्ष, विश्वासघात और बलिदान की कहानी को बड़े पर्दे पर जीवंत किया जाएगा।
मुगलों के खिलाफ संभाजी की लड़ाई और लगातार जीत
1682 के बाद औरंगजेब ने दक्षिण भारत में मराठों को खत्म करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन संभाजी महाराज की जबरदस्त सैन्य रणनीति और गुरिल्ला युद्ध नीति के आगे मुगलों को कई बार हार का सामना करना पड़ा। मराठों ने बुरहानपुर पर जोरदार हमला कर मुगल सेना को भारी नुकसान पहुंचाया।
विकी कौशल की फिल्म ‘छावा’ में दिखाया जाएगा कि किस तरह संभाजी महाराज ने अपने पराक्रम से मुगलों को नाकों चने चबवा दिए थे। लेकिन साथ ही यह भी कि कैसे कुछ विश्वासघाती अपनों ने ही उनकी सबसे बड़ी हार की भूमिका तैयार की।
गनोजी शिर्के और कान्होजी का विश्वासघात
संभाजी महाराज ने भले ही बाहरी दुश्मनों से जीत हासिल की, लेकिन आंतरिक षड्यंत्रों ने उनकी हार का कारण बना दिया। उनके अपने रिश्तेदार गनोजी शिर्के और कान्होजी शिर्के ने मुगलों से हाथ मिला लिया। गनोजी शिर्के, जो संभाजी की पत्नी येसुबाई के भाई थे, ने औरंगजेब के मुगल सरदार मकरब खान से मिलकर संभाजी को पकड़वाने की साजिश रची।
संभाजी का अपहरण और यातनाओं की दास्तां
31 जनवरी 1689 को संगमेश्वर में जब संभाजी अपनी सेनाओं के साथ निकलने वाले थे, तब गनोजी शिर्के ने धोखे से मुगलों को उनके रास्ते की सूचना दे दी। मुगलों ने उन्हें पकड़कर तुलापुर ले जाया, जहां औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम कबूल करने को कहा, लेकिन संभाजी महाराज ने इनकार कर दिया। इसके बाद उन्हें 38 दिनों तक क्रूर यातनाएं दी गईं—आंखें निकाल दी गईं, जीभ काट दी गई, शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर नदी में फेंका गया।
फिल्म ‘छावा’ में इस पूरी घटना को बड़े स्तर पर दिखाया जाएगा, जिससे आज की युवा पीढ़ी को मराठा इतिहास की वास्तविकता का पता चल सके।
मरते दम तक नहीं झुके ‘छावा’
संभाजी महाराज को 11 मार्च 1689 को फांसी दे दी गई, लेकिन वे मरते दम तक औरंगजेब के आगे नहीं झुके। यह इतिहास की उन कहानियों में से एक है, जिसे सुनकर आज भी लोगों की रूह कांप जाती है।
विकी कौशल की ‘छावा’ में न केवल युद्ध कौशल को बल्कि संभाजी महाराज की वीरता और बलिदान को भव्य तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा। यह फिल्म सिर्फ एक मनोरंजन का जरिया नहीं, बल्कि मराठा गौरव को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने का एक जरिया होगी।
‘छावा’ का क्या होगा असर?

फिल्म के जरिए संभाजी महाराज की कहानी सिर्फ मराठा समुदाय तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पूरे देश में उनकी वीरता की गूंज सुनाई देगी। फिल्म को लेकर लोगों में पहले से ही जबरदस्त उत्साह है और यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे विकी कौशल पर्दे पर इस महान योद्धा की भूमिका निभाते हैं।
संभाजी महाराज की कहानी केवल एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं, बल्कि बलिदान, धैर्य और अदम्य साहस का प्रतीक है। विकी कौशल की फिल्म ‘छावा’ के जरिए यह गौरवशाली इतिहास फिर से लोगों के सामने आएगा और इस महान योद्धा की कहानी को और भी प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करेगा।