Tuesday, July 1, 2025
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बिहार की सियासत में गरमाहट: राहुल गांधी का दलित फोकस बनाम पीएम मोदी की चुनावी रैली, सामाजिक न्याय बनाम विकास का एजेंडा

बिहार में विधानसभा चुनावों की सरगर्मी अभी से तेज हो गई है। चुनाव में अभी वक्त है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दल अपनी रणनीति बनाने और ज़मीनी पकड़ मजबूत करने में जुट गए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी जहां दलित और अति पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मई के आखिरी हफ्ते में होने वाला दौरा बीजेपी के एजेंडे को धार देने की तैयारी है।

राहुल गांधी का बिहार मिशन: सामाजिक न्याय की धार

राहुल गांधी 15 मई को बिहार के दौरे पर आ रहे हैं। बीते पांच महीनों में यह उनका चौथा बिहार दौरा है, जो कांग्रेस की गंभीर मंशा को दर्शाता है। कांग्रेस का फोकस स्पष्ट है—दलित, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग। बिहार की राजनीति में ये वर्ग निर्णायक भूमिका निभाते हैं और लंबे समय से कांग्रेस इन वर्गों का खोया जनाधार वापस पाने की कोशिश कर रही है।

राहुल गांधी इस दौरे में पटना में सामाजिक न्याय के कार्यकर्ताओं से मिलेंगे और महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले पर आधारित फिल्म ‘फुले’ भी देखेंगे। यह फिल्म न केवल सामाजिक सुधार के ऐतिहासिक संघर्षों को प्रस्तुत करती है, बल्कि राहुल गांधी के संदेश को भी मजबूती देती है कि कांग्रेस सामाजिक न्याय की राजनीति को केवल नारेबाज़ी के स्तर पर नहीं, बल्कि गंभीर एजेंडे के रूप में देख रही है।

छात्रों से संवाद: रोजगार, शिक्षा और पलायन के मुद्दे पर फोकस

राहुल गांधी दरभंगा या मुजफ्फरपुर में दलित और अति पिछड़े वर्ग के छात्रों से संवाद करेंगे। इन छात्रों के साथ शिक्षा, रोजगार की उपलब्धता और राज्य से पलायन जैसे गंभीर मसलों पर बातचीत की जाएगी। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि ये वे मुद्दे हैं जो सबसे ज्यादा दलित और अति पिछड़े समाज को प्रभावित करते हैं।

कांग्रेस के बिहार सह-प्रभारी सुशील पासी के अनुसार, राहुल गांधी का यह संवाद कार्यक्रम केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि यह जमीनी स्तर की परेशानियों को समझने और उनके समाधान की दिशा में पार्टी की प्रतिबद्धता का संकेत है।

कांग्रेस का सांगठनिक संदेश: नेतृत्व में दलित चेहरों को तरजीह

कांग्रेस ने हाल ही में संगठनात्मक बदलाव करते हुए अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर राजेश कुमार को बिहार प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, जो दलित समुदाय से आते हैं। साथ ही सुशील पासी को सह-प्रभारी नियुक्त कर कांग्रेस ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि उसकी राजनीति अब दलित-मुस्लिम समीकरण पर आधारित होगी। यह नया नेतृत्व दलित समुदाय के बीच कांग्रेस की छवि को फिर से मजबूत कर सकता है।

पीएम मोदी का संभावित दौरा: विकास और राष्ट्रवाद का एजेंडा

बीजेपी की ओर से बिहार प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने जानकारी दी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मई के अंतिम सप्ताह में बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज में एक विशाल रैली को संबोधित करेंगे। पीएम मोदी के इस दौरे को ऑपरेशन सिंदूर के बाद सियासी एजेंडा सेट करने की रणनीति से जोड़ा जा रहा है। उनका यह दौरा राहुल गांधी के बिहार प्रवास के तुरंत बाद होगा, जिससे राजनीतिक मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है।

बिहार में जातीय समीकरण और कांग्रेस की वापसी की उम्मीद

बिहार की राजनीति लंबे समय से जातीय समीकरणों पर आधारित रही है। दलित, ओबीसी और मुस्लिम वोट बैंक को साधे बिना कोई भी दल सत्ता तक नहीं पहुंच सकता। एक समय कांग्रेस का वोट बैंक दलित, मुस्लिम और सवर्णों के बीच फैला हुआ था, लेकिन सत्ता से बाहर रहने के कारण पार्टी का आधार कमजोर हो गया। अब राहुल गांधी दलित कार्ड खेलते हुए इस आधार को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं।

पार्टी नेताओं का दावा है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी ने जिस तरह से दलित मुद्दों को प्राथमिकता दी, उसका असर बिहार में भी दिखाई देने लगा है। राहुल ने बार-बार आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बात की है, जिससे दलित वर्ग में उनका समर्थन बढ़ा है। कांग्रेस का मानना है कि यदि वह इन वर्गों को अपने पक्ष में लामबंद कर पाई, तो 2025 के विधानसभा चुनाव में उसे निर्णायक बढ़त मिल सकती है।

निष्कर्ष: सामाजिक न्याय बनाम राष्ट्रवाद की लड़ाई

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव सामाजिक न्याय बनाम राष्ट्रवाद और विकास के एजेंडे की लड़ाई के रूप में उभर सकता है। राहुल गांधी का लगातार बिहार दौरा, दलित समाज से संवाद और कांग्रेस में दलित नेतृत्व को प्रमोट करने की रणनीति स्पष्ट करती है कि कांग्रेस अब पिछड़े और दलित वर्गों की राजनीति में गंभीर दावेदारी कर रही है। वहीं प्रधानमंत्री मोदी का दौरा बीजेपी के परंपरागत एजेंडे—विकास, सुरक्षा और राष्ट्रवाद—को दोहराने का मंच बनेगा।

अब देखना यह है कि बिहार की जनता इन दो विपरीत राजनीतिक ध्रुवों में से किसे अपना समर्थन देती है—सामाजिक न्याय की नई परिभाषा को, या फिर विकास और स्थिरता के वादों को।


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