
बिहार में विधानसभा चुनावों की दस्तक से पहले महागठबंधन में उठा-पटक चरम पर है। गठबंधन की कमान आरजेडी के हाथ में है और पार्टी ने तेजस्वी यादव को पहले ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया है। खुद लालू यादव ने मंच से ऐलान कर दिया कि “कोई माई का लाल तेजस्वी को सीएम बनने से नहीं रोक सकता।” लेकिन इस घोषणा पर कांग्रेस ने ‘ब्रेक’ लगा रखा है।
पटना में बिग मीटिंग, क्या बंधेगी डील?
15 अप्रैल को दिल्ली में तेजस्वी यादव और कांग्रेस हाईकमान की मुलाकात के बावजूद ना सीटों का फॉर्मूला तय हो पाया, ना सीएम का चेहरा फाइनल हुआ। अब गुरुवार को पटना में महागठबंधन की बड़ी बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में आरजेडी, कांग्रेस, वीआईपी और वाम दलों के नेता शामिल होंगे और कोशिश होगी कि असमंजस की इस धुंध को साफ किया जा सके।
चार एजेंडे, एक लक्ष्य – जीत!
- सीट बंटवारे पर सहमति: कौन सी पार्टी कितनी सीटों पर लड़ेगी? इस पर चल रही रस्साकशी को खत्म करने की कोशिश होगी।
- समन्वय समिति का गठन: ताकि चुनावी रणनीति मिल-बैठकर बनाई जा सके।
- पशुपति पारस को गठबंधन में शामिल करना या नहीं: इस मुद्दे पर भी राय बन सकती है।
- चुनावी नैरेटिव की दिशा तय करना: यानी तेजस्वी के एजेंडे – पढ़ाई, दवाई, कमाई, सिंचाई, सुनवाई और कार्रवाई – को कैसे आगे बढ़ाया जाए।
सीएम फेस पर टकराव
आरजेडी जहां तेजस्वी को चेहरा घोषित कर चुकी है, वहीं कांग्रेस अब भी दो कदम पीछे है। कांग्रेस चाहती है कि 2024 की तर्ज पर चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाए, बिना किसी एक चेहरे के। आरजेडी के लिए यह मंजूर नहीं।
तेजस्वी लगातार सभाओं में जनता से वादे कर रहे हैं और खुद को भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर रहे हैं। उनके पिता लालू यादव भी खुलकर बेटे के समर्थन में उतर चुके हैं। लेकिन कांग्रेस का कहना है कि जब तक सीटों पर सहमति नहीं बनती, तब तक चेहरा तय नहीं किया जाना चाहिए।
दिल्ली से नहीं निकला हल, क्या पटना से निकलेगा?
दिल्ली की बैठक में जो बात नहीं बन सकी, अब सबकी नजरें पटना पर हैं। क्या महागठबंधन तेजस्वी के नाम पर मुहर लगाएगा या फिर बात एक बार फिर टल जाएगी?
कांग्रेस की चुप्पी और तेजस्वी की संयमित प्रतिक्रिया इशारा कर रही है कि अंदरूनी खींचतान अभी बाकी है। ऐसे में सवाल बड़ा है — क्या गठबंधन मजबूती के साथ चुनावी मैदान में उतरेगा या फिर चेहरे और फार्मूले की उलझन उसका भविष्य तय कर देगी?