बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने 71 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी। इस लिस्ट में सबसे बड़ा राजनीतिक उलटफेर यह रहा कि बीजेपी ने अपने 9 मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया, जिनमें कई वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं। सबसे चर्चित नाम है नंद किशोर यादव, जो वर्तमान में बिहार विधानसभा के अध्यक्ष हैं और सात बार के विधायक रह चुके हैं।
बीजेपी का यह कदम पार्टी के भीतर नई पीढ़ी को मौका देने, स्थानीय एंटी-इनकंबेंसी को कम करने और परफॉर्मेंस आधारित चयन की नीति का हिस्सा माना जा रहा है।
जिन 9 विधायकों के टिकट कटे:
1.नंद किशोर यादव – पटना साहिब
2.अरुण सिन्हा – कुम्हरार
3.अमरेंद्र प्रताप सिंह – आरा
4.रामसूरत राय – औराई
5.मोतीलाल साह – रीगा
6.रामप्रीत पासवान – राजनगर
7.प्रणव यादव – मुंगेर
8.स्वर्णा सिंह – गौरा बौराम
9.निकी हेम्ब्रम – कटोरिया
टिकट कटने की संभावित वजहें
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, विधायकों के टिकट काटे जाने के पीछे कई कारण सामने आए हैं:
उम्र का फैक्टर: 2–3 विधायक 75 वर्ष या उससे अधिक उम्र के हो चुके हैं। इनमें नंद किशोर यादव और अरुण सिन्हा प्रमुख हैं।
स्थानीय विरोध: कुछ विधायकों के खिलाफ क्षेत्रीय स्तर पर असंतोष था, जिससे पार्टी को नुकसान का डर था।
कमजोर प्रदर्शन: कुछ नेताओं को लो परफॉर्मर मानते हुए बाहर किया गया।
आंतरिक गुटबाजी: एक-दो सीटों पर नित्यानंद राय जैसे शीर्ष नेताओं के प्रभाव की भी चर्चा है।
प्रमुख विधायकों पर नजर
नंद किशोर यादव (पटना साहिब):
75 वर्ष से अधिक आयु होने के कारण पार्टी ने उन्हें “सम्मानजनक विदाई” दी है। नंद किशोर यादव ने कहा — “मैं पार्टी के निर्णय से पूरी तरह सहमत हूं। बीजेपी ने मुझे बहुत कुछ दिया है। नई पीढ़ी का स्वागत है।”
अब उनकी जगह रत्नेश कुशवाहा को टिकट दिया गया है।
मोतीलाल साह (रीगा):
नीतीश सरकार में मंत्री रहने के बावजूद पार्टी ने उनका टिकट काटकर बैद्यनाथ प्रसाद को मैदान में उतारा है। इसे जातीय समीकरण और नई रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
रामसूरत राय (औराई):
स्थानीय विरोध और गुटबाजी के चलते टिकट नहीं मिला। चर्चा है कि नित्यानंद राय की सिफारिश पर उन्हें हटाया गया।
अरुण सिन्हा (कुम्हरार):
75 वर्ष से अधिक आयु के कारण टिकट नहीं दिया गया। हालांकि उनके क्षेत्र में कोई बड़ा विरोध नहीं था।
अमरेंद्र प्रताप सिंह (आरा):
स्थानीय स्तर पर असंतोष और खुद उनके चुनाव न लड़ने की इच्छा को देखते हुए पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया।
प्रणव यादव (मुंगेर):
पार्टी ने उन्हें हटाकर नए चेहरे को मौका देने की नीति अपनाई।
निकी हेम्ब्रम (कटोरिया):
कमजोर प्रदर्शन, संगठन से दूरी और पारिवारिक विवादों के कारण टिकट कटा।
रामप्रीत पासवान (राजनगर):
उम्र और परफॉर्मेंस दोनों फैक्टर के चलते पार्टी ने उन्हें रिप्लेस किया।
स्वर्णा सिंह (गौरा बौराम):
अभी तक कारण स्पष्ट नहीं, लेकिन माना जा रहा है कि वह लो परफॉर्मर रही हैं।
अब आगे क्या?
अब सबकी नजर इस बात पर है कि टिकट से वंचित ये 9 विधायक क्या रुख अपनाते हैं — क्या वे पार्टी के फैसले को स्वीकार करेंगे या चुनाव में बागी बनकर बीजेपी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, 2–3 विधायकों के स्वतंत्र रूप से चुनाव मैदान में उतरने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
बीजेपी का यह बड़ा कदम इस बात का संकेत है कि पार्टी अब बिहार में नई पीढ़ी, प्रदर्शन और संगठनात्मक ताकत को प्राथमिकता दे रही है।