रांची/पटना, 9 जुलाई 2025 — राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को देवघर कोषागार घोटाले के मामले में एक और बड़ा झटका लगा है। झारखंड हाई कोर्ट ने सीबीआई की उस याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसमें विशेष अदालत द्वारा लालू यादव को दी गई साढ़े 3 साल की सजा को “अपर्याप्त” बताते हुए सजा की अवधि बढ़ाने की मांग की गई थी।
यह मामला कुख्यात चारा घोटाले का एक हिस्सा है, जिसमें देवघर ट्रेजरी से फर्जीवाड़ा कर ₹89 लाख की अवैध निकासी की गई थी।
क्या है देवघर कोषागार घोटाला?
साल 1990 के दशक में देवघर स्थित पशुपालन विभाग को दवाइयों और उपकरणों की खरीद के लिए ₹4.7 करोड़ की धनराशि आवंटित की गई थी। लेकिन, जांच में सामने आया कि अधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत से जाली रसीदों के ज़रिए ₹89 लाख की अवैध निकासी कर ली गई।
लालू यादव पर आरोप है कि वे उस समय पशुपालन मंत्री थे और उन्हें घोटाले की जानकारी होते हुए भी उन्होंने कार्रवाई नहीं की, बल्कि जांच से जुड़ी महत्वपूर्ण फाइलें अपने पास रोककर रखीं।
सीबीआई की आपत्ति और हाई कोर्ट का निर्णय
विशेष सीबीआई अदालत ने लालू यादव को इस मामले में 3.5 साल की सजा सुनाई थी। हालांकि, सीबीआई ने फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में अपील दाखिल की, जिसमें कहा गया:
“जबकि अपराध की गंभीरता को देखते हुए इस मामले में अधिकतम 7 साल तक की सजा संभव थी, अदालत ने न्याय के साथ अन्याय करते हुए केवल साढ़े तीन साल की सजा दी।”
अब हाई कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसका अर्थ है कि लालू यादव की सजा की अवधि बढ़ाई जा सकती है। अंतिम फैसला सुनाए जाने तक वह कानूनी रूप से खतरे में बने रहेंगे।
लालू यादव के अन्य मामलों का लेखा-जोखा
देवघर मामला चारा घोटाले की केवल एक कड़ी है। इसके अतिरिक्त लालू यादव को चार अन्य मामलों में भी दोषी ठहराया जा चुका है:
चाईबासा ट्रेजरी घोटाले में दो मामलों में सजा
दुमका ट्रेजरी घोटाले में 7 साल की सजा, जो अब तक की सबसे लंबी सजा है
डोरंडा कोषागार से जुड़ा मामला, जिसमें भी दोषी ठहराया गया है
इन सभी मामलों में लालू यादव को पद का दुरुपयोग, सरकारी धन की लूट, और आपराधिक षड्यंत्र के आरोपों में दोषी पाया गया।
राजनीतिक असर और आगे की राह
यह फैसला आरजेडी के लिए भी राजनीतिक झटका साबित हो सकता है, क्योंकि पार्टी के शीर्ष नेता पर चल रहे मुकदमे और संभावित कड़ी सजा का असर 2025 के अंत में संभावित बिहार विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव की रणनीतियों पर पड़ेगा।
अब निगाहें झारखंड हाई कोर्ट के आखिरी आदेश पर टिकी हैं, जो लालू यादव के लिए कानूनी और राजनीतिक भविष्य का निर्धारण करेगा।