
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एससी-एसटी आरक्षण मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अपने फैसले में शीर्ष कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजातियों (एससी/एसटी) को अब ‘कोटे के अंदर कोटा’ देने का प्रावधान किया जा सकता है। इस दौरान 5 जजों की पीठ ने कहा, ‘हालांकि आरक्षण के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में कठिनाई होती है।’
फैसले के दौरान जस्टिस बी आर गवई ने ‘सामाजिक लोकतंत्र’ की आवश्यकता पर संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर के भाषण को याद किया। गवई ने कहा, “पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) वर्ग के केवल कुछ लोग ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। हम जमीनी हकीकत से इनकार नहीं कर सकते हैं। एससी/एसटी के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। वर्गीकरण का आधार यह है कि एक बड़े समूह में से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।”
फैसले में शामिल रहे CJI
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 20 साल पुराने 5 जजों के फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने संकेत दिया कि एससी और एसटी के आरक्षण के लिए एक सब-कैटेगरी बनाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले में सीजेआई चंद्रचूड़ सहित 7 जज शामिल थे। इस फैसले में 6 जजों ने पक्ष में जबकि एक जज ने विपक्ष में वोट किया, यानी यह फैसला 6/1 से पास हुआ। जस्टिस बेला त्रिवेदी इस फैसले से असहमत रहीं।
2004 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था
एससी/एसटी के आरक्षण के संबंध में 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था। इसमें 5 जजों की पीठ शामिल थी। 2004 के फैसले में कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण देने के लिए उन्हें उप-श्रेणियों में विभाजित करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसा करना समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा। हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के इस फैसले का मतलब यह होगा कि राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच उप-श्रेणियां बनाने का अधिकार होगा।