
कोयंबटूर – केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बुधवार को ईशा फाउंडेशन द्वारा आयोजित महाशिवरात्रि उत्सव में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कहा कि वह तमिल, जो विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, में बोलने में असमर्थ हैं, इसके लिए क्षमा चाहते हैं।
अमित शाह ने महाशिवरात्रि के महत्व पर बोलते हुए कहा, “आज ही प्रयागराज में महाकुंभ समाप्त हो रहा है, और कोयंबटूर में भक्ति का महाकुंभ जारी है।” उन्होंने इस विशेष अवसर पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव का आभार व्यक्त किया और कहा कि महाशिवरात्रि आदि शिव के दर्शन कराने का अवसर है।
शिव आराध्य नहीं, भक्ति का मूल आधार हैं
गृह मंत्री ने कहा, “आज शिव और पार्वती के मिलन का दिन है। शिव केवल आराध्य नहीं बल्कि भक्ति का मूल आधार हैं। वे भक्ति की पराकाष्ठा का स्वरूप हैं।” उन्होंने आगे कहा कि “शिव यहां आदियोगी के रूप में विराजमान हैं और विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं।”
सद्गुरु के प्रयास मानवता की सेवा
अमित शाह ने सद्गुरु जग्गी वासुदेव की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने इस स्थान को भक्ति और योग का केंद्र बनाया, जो मानवता की बड़ी सेवा है। उन्होंने कहा, “यहां स्थापित 112 फीट ऊंची आदियोगी की प्रतिमा अध्यात्म के 112 मार्गों को दर्शाती है। यहां आकर एहसास होता है कि शिवत्व ही अंतिम लक्ष्य है।”
योग को वैश्विक पहचान दिलाने में मोदी और सद्गुरु का योगदान
गृह मंत्री ने कहा कि ईशा योग ईश्वर से युवाओं को जोड़ने का माध्यम बन गया है। सद्गुरु ने न सिर्फ युवाओं को धर्म से जोड़ा, बल्कि उन्हें धर्म का महत्व भी समझाया। उन्होंने कहा, “सद्गुरु आज पूरी दुनिया को जीने का सही मार्ग दिखा रहे हैं और सनातन धर्म की गूढ़ता को समझने का अवसर दे रहे हैं।”
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योगदान का जिक्र करते हुए कहा, “सद्गुरु ने योग को वैश्विक पहचान दिलाई, और मोदी जी ने योग दिवस के माध्यम से पूरी दुनिया को योग का महत्व समझाया। योग प्राचीन होने के बावजूद आज भी प्रासंगिक है। यह न सिर्फ स्थिरता देता है बल्कि भक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है और परमात्मा से जोड़ता है।”
तमिल इतिहास के बिना आध्यात्मिक संस्कृति की व्याख्या अधूरी
अमित शाह ने कहा कि भारत की आध्यात्मिक संस्कृति को तमिल इतिहास के बिना नहीं समझा जा सकता। उन्होंने महर्षि तिरुमूलर और अगस्त्य मुनि के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि “महर्षि तिरुमूलर ने 3000 से अधिक वैदिक श्लोकों की रचना की, जो भारतीय आध्यात्मिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं।”
अंत में, उन्होंने कहा, “सद्गुरु ने इस जागृति को फैलाया है कि शिव ही चेतना हैं, शिव ही शाश्वत हैं।”