
Akhilesh yadav on Muslim votes: उत्तर प्रदेश का संभल जिला इन दिनों राजनीतिक हलचल का केंद्र बना हुआ है। पिछले महीने धर्मस्थल के सर्वे के दौरान भड़की हिंसा के बाद सत्ताधारी और विपक्षी दलों ने अपनी सियासी चालें तेज कर दी हैं। इस घटना ने संभल को मुस्लिम वोट बैंक साधने के नए सियासी प्रयोग का मैदान बना दिया है।
सपा का प्रतिनिधिमंडल और 5 लाख की सहायता
घटना के एक महीने बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपना दस सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भेजा है। यह प्रतिनिधिमंडल हिंसा पीड़ितों से मुलाकात करेगा और उनके जख्मों पर मरहम लगाने के साथ-साथ आर्थिक सहायता के रूप में 5-5 लाख रुपये की राशि देगा। इसके साथ ही प्रतिनिधिमंडल हिंसा की साजिश की भी जांच करेगा और लखनऊ लौटकर अखिलेश यादव को रिपोर्ट सौंपेगा।
मुस्लिम वोट बैंक की अहमियत
उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक का महत्व काफी अधिक है। राज्य में लगभग 20% मुस्लिम आबादी है, जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। सपा को पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मुस्लिमों का भारी समर्थन मिला था, जिससे पार्टी ने विधानसभा में अपनी स्थिति मजबूत की और लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।
संभल हिंसा पर सपा का सियासी दांव
अखिलेश यादव ने संभल हिंसा के बहाने मुस्लिम समुदाय के साथ खड़े होने का संदेश दिया है। सपा के प्रतिनिधिमंडल में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय, सांसद जियाउर रहमान बर्क, विधायक इकबाल महमूद और अन्य मुस्लिम नेता शामिल हैं। सपा ने हिंसा के पीड़ित परिवारों से मुलाकात और आर्थिक मदद के जरिये मुस्लिम समुदाय को अपने साथ बनाए रखने की रणनीति अपनाई है।
कांग्रेस और अन्य दलों का दबाव
संभल हिंसा के पीड़ितों से पहले ही राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दिल्ली में मुलाकात कर चुके हैं। इस कदम से कांग्रेस ने सपा पर सियासी दबाव बढ़ा दिया है। वहीं, बसपा और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी मुस्लिम वोट बैंक पर नजरें गड़ाए हुए हैं।
अखिलेश की चुनौती और मजबूरी
मुस्लिम वोट बैंक सपा का आधार है, और इसे खोने का मतलब है पार्टी के राजनीतिक भविष्य पर संकट। सीएए-एनआरसी से लेकर बुलडोजर कार्रवाई तक कई मौकों पर अखिलेश ने मुस्लिम मुद्दों पर मुखर रुख नहीं अपनाया, जिससे समुदाय के एक वर्ग में नाराजगी रही। लेकिन संभल हिंसा पर आक्रामक तेवर अखिलेश की राजनीतिक मजबूरी और रणनीति को साफ दिखाते हैं।
संभल का सियासी महत्व
संभल की घटना ने सपा को अपने पुराने एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण को मजबूत करने का अवसर दिया है। अखिलेश यादव ने इस घटना के जरिए स्पष्ट संदेश दिया है कि मुस्लिम समुदाय को लेकर वह कोई जोखिम उठाने के मूड में नहीं हैं। कांग्रेस और अन्य दलों की सक्रियता ने इस मुद्दे को और भी संवेदनशील बना दिया है।
संभल हिंसा सपा के लिए न केवल मुस्लिम वोटों को मजबूत करने का अवसर है, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भी राजनीतिक तौर पर अहम है।