Saturday, December 13, 2025
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SIR पर सियासत का महाभारत — अखिलेश ने लगाया ‘वोट कटवा’ का बड़ा आरोप, चुनाव आयोग ने बढ़ाई समयसीमा

सहारनपुर का मंच, तेज़ बातें और सवालों की बारिश: सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने SIR (Special Summary Revision) प्रक्रिया को लेकर आज फिर तीखा हमला बोला—ऐसा हमला जिसमें शक की सुई हर तरफ घूमती दिखी। उन्होंने यूपी में “तीन करोड़ से अधिक वोट कटने” जैसे नुमाइंदा और चौकाने वाले दावे के साथ बीजेपी और प्रशासन पर साज़िश का आरोप लगाया। भीड़ के बीच उनकी आवाज़ में वही कटुता थी जो किसी बड़े चुनावी आरोप की आदत होती है — तीखी, कटाक्षी और चुनौतीपूर्ण।

अखिलेश की भाषा में — सवाल, तंज और इशारे:
“सोचिए अगर तीन करोड़ वोट कट गए — क्या फिर वही चुनकर आए लोग सही माने जाएंगे?” — यह सवाल सिर्फ सवाल नहीं, एक आरोप था। उन्होंने कहा कि जिन सीटों पर बीजेपी पिछली बार हारी, वहाँ वोट कटवाने की कोशिश हो रही है। उनके बयान का लहज़ा साफ़ था — ‘यह कोई आकस्मिक गलती नहीं, यह सुनियोजित कोशिश है।’

राजनीतिक नक्शा बदलने की कोशिश? अखिलेश ने आरोप लगाया कि SIR एक ऐसा औज़ार बन गया है जिसे इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर विपक्ष के वोटों को कम किया जा रहा है। उनकी नज़रों में यह सिर्फ़ यूपी का मामला नहीं — यह देश के कई हिस्सों में चुनावी रणनीति बन चुकी है।

घुसपैठिया आरोप पर कटाक्ष: उन्होंने सुलझे हुए अंदाज़ में कहा कि ‘घुसपैठ’ का मुद्दा भी चुनावी रणनीति का हिस्सा है—यह जानकर कि जो सरकार दिल्ली में बैठी है, वही आंकड़े पेश करेगी। कटाक्ष था: “बिहार में कितने घुसपैठिये मिले — बताइए? यूपी में भी कुछ निकाला जाएगा, पर यह बड़े पैमाने पर वोट काटने का माध्यम बन जाएगा।”


चुनाव आयोग ने बढ़ाई समय सीमा — क्या यह भी राजनीतिक बहस का हिस्सा बनेगा?

चुनाव आयोग ने 12 राज्यों में चल रही SIR की तारीखें बढ़ाईं — यह तकनीकी कदम तुरंत ही राजनैतिक बहस का हिस्सा बन गया। प्रमुख नई तिथियाँ:

उत्तर प्रदेश: 26 दिसंबर तक (पहले 11 दिसंबर)

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, अंडमान-निकोबार: 18 दिसंबर तक

गुजरात, तमिलनाडु: 14 दिसंबर तक

चुनाव आयोग का औपचारिक तर्क: नागरिकों को नाम जोड़ने/सुधारने के लिए और समय देना। पर राजनीति की दुनिया में हर तकनीकी फ़ैसला ही राजनीतिक अर्थों से खाली नहीं रहता — और SIR पर यह कदम भी बहस के केंद्र में है।


मंच से गली तक — राजनीतिक हलकों में क्या गूँज रही है?

विपक्ष की बेचैनी: सपा की ओर से SIR को लेकर जारी हमला केवल बयानबाज़ी नहीं—यह चिंता का संकेत है कि मतदाता सूची में होने वाले मामूली-सा बदलाव भी बड़े चुनावी नतीजे प्रभावित कर सकते हैं।

सरकार की चुप्पी/प्रतिक्रिया: अभी तक सर्वथा औपचारिक जवाबों के अलावा कोई बड़ा बयान नहीं आया—पर यही चुप्पी कुछ के लिए ‘ताकत का संकेत’ और कुछ के लिए ‘झिझक’ दोनों दिखती है।

जनसैलाब का असर: स्थानीय स्तर पर SIR के बढ़े हुए समय से बहुत से लोग नाम जोड़ने/सुधारने का मौका पाएँगे — पर राजनीतिक रंजिश इसे बड़े आख़िरी मोर्चे में बदल सकती है।


नज़र रखना ज़रूरी — तीन महत्वपूर्ण सवाल

1.SIR के दौरान कितने वोट वास्तविक रूप से ‘कट’ पाए गए — और क्या उनका पैटर्न किसी राजनैतिक फाइदे में दिखता है?

2.चुनाव आयोग का विस्तार कब तक शांतिपूर्ण, निष्पक्ष रूप से लागू होगा — और क्या इस पर निगरानी के पर्याप्त उपाय हैं?

3.कौन से जिलों/सीटों पर इससे असाधारण बदलाव दिखे — और क्या वहां संवेदनशीलता बढ़ने की संभावना है?

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VIKAS TRIPATHI
VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
VIKAS TRIPATHI भारत देश की सभी छोटी और बड़ी खबरों को सामने दिखाने के लिए "पर्दाफास न्यूज" चैनल को लेके आए हैं। जिसके लोगो के बीच में करप्शन को कम कर सके। हम देश में समान व्यवहार के साथ काम करेंगे। देश की प्रगति को बढ़ाएंगे।
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