कांग्रेस में ऑपरेशन सिंदूर और हालिया टैरिफ विवाद के बाद चीन को लेकर गर्मागर्मी बढ़ रही है, लेकिन पार्टी के दिग्गज सांसद शशि थरूर ने इस लड़खड़ाती तस्वीर के बीच अलग और संतुलित रुख अपनाया है। थरूर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत संबंधों में संतुलन बहाल करने की दिशा में एक जरूरी कदम है और उन्होंने सरकार से अपेक्षा जताई कि वह अपने रुख पर कायम रहेगी।
कांग्रेस का हमला — और थरूर का मोर्चा
कांग्रेस के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री पर चीन के सामने झुकने और पाकिस्तान–चीन के ‘जुगलबंदी’ पर चुप्पी साधने का आरोप लगाते हुए तीखा विरोध जताया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता जैसे सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी ने भी चीन संबंधी सतर्कता और निर्भरता को लेकर सरकार को चेतावनी दी है — मनीष तिवारी ने विशेष रूप से कहा कि चीन पर अत्यधिक निर्भरता भारत के हित में नहीं होगी।
थरूर ने क्या तर्क दिया?
विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष थरूर ने कहा कि मोदी–शी की बातचीत पिछले साल की मधुरता की अगली कड़ी प्रतीत होती है और यह भू-राजनीतिक परिदृश्य में संतुलन बनाये रखने के लिये आवश्यक है। थरूर ने यह भी जोड़ा कि हालिया वैश्विक घटनाक्रम, विशेषकर अमेरिका-चीन तनावों के मद्देनजर, दोनों महाशक्तियों के साथ व्यावहारिक रिश्ते बनाए रखना भारत के लिये अनिवार्य है।
ऑपरेशन सिंदूर और उसका राजनीतिक सन्दर्भ
“ऑपरेशन SINDOOR” के संदर्भ में भी विपक्ष ने सरकार से सवाल किए हैं; यह सैन्य/रणनीतिक अभियान सरकार की विदेश नीति और सुरक्षा निर्णयों के पटल पर चर्चा का एक बड़ा कारण बना हुआ है। सरकार ने देश के हितों को सुरक्षित रखने का रुख अपनाने का दावा किया है, जबकि विपक्ष ने कुछ मामलों में चुप्पी पर उठापटक की है। (ऑपरेशन SINDOOR से जुड़ी आधिकारिक जानकारी और पीछे के बयान सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं)।
पार्टी-आधारित मतभेदों के कारण और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
थरूर अक्सर विदेशनीति पर पार्टी की सामान्य लाइन से अलग बयान देते रहे हैं — उनके अनुभव (संयुक्त राष्ट्र में कार्यकाल), विदेश मामलों के विशेषज्ञ होने और महत्वाकांक्षा को इसके कारण माना जाता है। केरल में 2026 के चुनाव और उनके संभावित मुख्यमंत्री चेहरे बनने की चर्चा भी इस तरह के अलग रुख की पृष्ठभूमि हो सकती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी के भीतर रणनीतिक और व्यक्तित्वगत गणित भी इन पलों को आकार देता है।
क्या मायने रखता है
आज के संदर्भ में यह मतभेद केवल राष्ट्रीय सुरक्षा या विदेश नीति का मामला नहीं रह गया है— यह राजनीतिक संदेश, आचार-व्यवहार और भविष्य की रणनीति का मुद्दा भी बन गया है। थरूर का तर्क कहता है कि कठोरता के साथ-साथ तर्कसंगत और व्यावहारिक व्यवहार भी जरूरी है; जबकि विपक्ष का सख्त रुख सरकार पर ज़िम्मेदारी और पारदर्शिता का दबाव बनाये रखेगा।