नई दिल्ली : देश में सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की दिशा में एक अहम पहल होने जा रही है। मुस्लिम समाज के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी जल्द ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात करेंगे। जमीयत की कार्यकारी समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया, जिसमें भागवत द्वारा हिंदू-मुस्लिम के बीच “गलतफहमियों को दूर करने” की अपील का स्वागत किया गया।
भाईचारे की पहल — बयान से आगे, ज़मीन पर दिखनी चाहिए
बैठक के बाद मौलाना अरशद मदनी ने कहा, “अगर हिंदू-मुस्लिम के साथ आने की बात हो, तो हम संघ के खिलाफ नहीं हैं। यह प्रयास केवल बातों तक सीमित न रहकर जमीनी स्तर पर भी दिखना चाहिए।”
बैठक में मौजूद एक पदाधिकारी के अनुसार, मदनी ने इस बात पर जोर दिया कि केवल बयानों से आगे बढ़कर व्यावहारिक कदम उठाने की आवश्यकता है।
संघ-शताब्दी कार्यक्रम की पृष्ठभूमि
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय “100 वर्ष-नए क्षितिज संवाद” कार्यक्रम में मोहन भागवत ने हिंदू-मुस्लिम अविश्वास को खत्म करने और दोनों समुदायों के बीच संवाद बढ़ाने की अपील की थी। इसी अपील के बाद जमीयत ने पहल को आगे बढ़ाने का फैसला किया है।
पिछली मुलाकातें और आगे की राह
यह पहली बार नहीं है जब दोनों नेता आमने-सामने होंगे। वर्ष 2019 में भी भागवत और मदनी की मुलाकात हुई थी, जिसमें आपसी भाईचारे और साथ मिलकर काम करने पर सहमति बनी थी। अब सूत्रों का कहना है कि सितंबर में नई दिल्ली में इस संवाद की अगली कड़ी देखने को मिल सकती है।
मौजूदा हालात पर जमीयत की चिंता
बैठक में जमीयत नेतृत्व ने देश में बढ़ती सांप्रदायिकता, कट्टरता और अशांति पर गहरी चिंता जताई। आरोप लगाया गया कि अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है और मदरसों-मस्जिदों को निशाना बनाया जा रहा है।
असम निष्कासन का मुद्दा: बैठक में कहा गया कि असम में 50 हज़ार से अधिक मुस्लिम परिवारों को केवल धर्म के आधार पर घरों से बेदखल किया गया। इस पर अरशद मदनी ने गंभीर चिंता जताई और मुख्य न्यायाधीश से हस्तक्षेप की अपील की।
अंतरराष्ट्रीय चिंता: बैठक में गाजा की स्थिति और वहां नागरिकों पर हो रहे हमलों पर भी संवेदना और चिंता व्यक्त की गई।
नतीजा: संवाद से बदल सकता है माहौल
जमीयत और संघ प्रमुखों के बीच प्रस्तावित मुलाकात से संकेत मिलते हैं कि सद्भाव और भरोसे की राजनीति को नया आयाम मिल सकता है। हालांकि, यह तभी संभव होगा जब पहल वास्तविक ज़मीनी कार्यवाही में बदलकर दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली का कारण बने।