लखनऊ, जन्माष्टमी के दिन गोमती नगर, विपुल खण्ड में खेलते-खेलते मात्र 3 साल का मासूम कार्तिक ऊपर से लगभग 20 फीट ऊँची लोहे की ग्रिल पर गिर गया। नुकीली लोहे की छड़ दर्दनाक ढंग से उसके सिर से आर-पार चली गई — दृश्य इतना भयावह था कि देखने वालों की सांस अटक गयी।
परिजन स्थानिक वेल्डर को बुलाकर ग्रिल काटवाने पर मजबूर हुए। प्राथमिक इलाज व मदद की उम्मीद लेकर परिवार पहले प्राइवेट अस्पताल गया, जहाँ उन्होंने बताया कि इलाज के लिए लगभग ₹15 लाख का अनुमान बताया गया। निराश और भावनात्मक दबाव में परिजन आधी रात को कार्तिक को लेकर किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) पहुँचे — वहीं से एक बहादुरी और विशेषज्ञता की ऐसी कहानी जन्मी जिसने तमाम कठोर हालात को मात दी।
माँ-बेटे की एक ही छाती पर दुआएँ—पर डॉक्टरों ने चुन लिया जीवन
अस्पताल के सूत्र बताते हैं कि कार्तिक की हालत गंभीर थी — लोहे की छड़ उसके छोटे से सिर में ऐसी अटक चुकी थी कि हर कदम जोखिम से भरा था। उस ही रात, डॉ. अंकुर बजाज और उनकी टीम ने यह चुनौती स्वीकार की। व्यक्तिगत कठिनाई और मनोवैज्ञानिक दबाव भी उनके साथ थे — डॉ. अंकुर की माँ उसी समय दिल के रोग से पीड़ित थीं और कार्डियोलॉजी में तीन स्टेंट लगाने के बाद नाजुक हालत में भर्ती थीं। फिर भी डॉ. अंकुर ने पेशे की जिम्मेदारी को चुना और ओ.आर. में प्रवेश कर मासूम की जान बचाने के लिए जूझ पड़े।
ऑपरेशन—साहस, संयम और तकनीक का संगम
सर्जरी छह घंटे से अधिक चली — हर मिनट जोखिम से भरा था: खून-खराबा, संवेदनशील अंगों का पास-पास होना और सूक्ष्म ऊतकों की सुरक्षा। पूरी टीम ने समन्वय और शांति से काम किया। ऑपरेशन थियेटर में न केवल स्केलपल चला, बल्कि एक तरह का संकल्प और धैर्य भी था जिसने चुनौती को जीत दिलाई।
अंततः वही हुआ जो घरवाले और डॉक्टर चाह रहे थे — लोहे की छड़ बच्चे के शरीर से अलग कर दी गयी। अस्पताल सूत्रों के अनुसार, यह काम मलिन परिस्थितियों में भी-बड़ी सूझबूझ और तड़ित निर्णय से संभव हुआ।
टीम व एनेस्थेसिया—अविश्वसनीय समर्पण
सर्जिकल टीम में प्रमुख थे: डॉ. बी.के. ओझा, डॉ. अंकुर बजाज, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जेसन और डॉ. बसु। एनेस्थीसिया विभाग से डॉ. कुशवाहा, डॉ. मयंक सचान और डॉ. अनीता ने भी रात-भर चौकस रहकर जीवनरक्षक भूमिका निभाई। इन चिकित्सकों और सहायक स्टाफ ने मिलकर उस रात असंभव को सम्भव कर दिखाया।
लागत का फर्क—मनुहार और मानवता
हृदय छू लेने वाला पहलू यह भी है कि निजी संस्थान ने जहाँ ₹15 लाख का अनुमान लगाया था, वहीं KGMU में इस जटिल एवं लंबी सर्जरी का उपचार लगभग ₹25,000 में सम्भव हुआ — यह केवल अंक नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और मानवता का संदेश है।
अभी का हाल और संदेश
ऑपरेशन सफल रहा और कार्तिक फिलहाल पोस्ट-ऑप निगरानी में है; डॉक्टरों की सूझबूझ और त्वरित हस्तक्षेप ने बच्चे को जीवन देने का अवसर दिया। परिवार और शहर-वासी दोनों ही चिकित्सकों के इस साहस और समर्पण की तारीफ़ कर रहे हैं।
यह घटना हमें कुछ कड़वे, पर ज़रूरी सच भी बताती है — हादसों में निर्णय-क्षमता और सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे की उपलब्धता जीवन और मृत्यु के बीच फर्क कर देती है। और वहीं, सच्चे डॉक्टर वे होते हैं जो मुश्किल घड़ी में भी डर कर पीछे न हटें — किसी के लिए दीपक बन कर आंधी में स्थिर रहें।
निष्कर्ष: कार्तिक की कहानी सिर्फ़ एक मेडिकल केस नहीं; यह निष्ठा, मानवता और सार्वजनिक संस्थान की ताकत की मिसाल है — और उन अनाम नायकों की भी, जो पचीसी हजार में किसी परिवार की दुनिया बचा देते हैं। 🙏🏼✨














