नई दिल्ली। भाजपा में संगठनात्मक बदलाव की सुगबुगाहट के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि पार्टी का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा। उप-राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय हो जाने के बाद अब निगाहें पूरी तरह भाजपा अध्यक्ष के चयन पर टिकी हैं। इस रेस में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और संगठन से जुड़े वरिष्ठ नेता संजय जोशी का नाम सबसे आगे है।
लेकिन इस परिदृश्य को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि 2014 से अब तक भाजपा अध्यक्षों का चयन कैसे होता रहा और इसमें संघ की भूमिका कितनी निर्णायक रही।
1️⃣ 2014 – अमित शाह का दौर
•2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल किया।
•इसके बाद जुलाई 2014 में अमित शाह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।
•शाह को संगठनात्मक रणनीति और चुनाव प्रबंधन का मास्टरमाइंड माना गया।
•उनके नेतृत्व में भाजपा ने 2014-2019 के बीच कई राज्यों में लगातार चुनाव जीते और संगठन का विस्तार अभूतपूर्व स्तर तक हुआ।
2️⃣ 2019 – जगत प्रकाश नड्डा की एंट्री
•2019 में मोदी-शाह की जोड़ी ने दूसरी बार भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाई।
•अमित शाह को गृहमंत्री बनाए जाने के बाद पार्टी अध्यक्ष का पद खाली हुआ।
•जनवरी 2020 में जेपी नड्डा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।
•नड्डा का कार्यकाल कोरोना काल और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में संगठनात्मक स्थिरता का दौर रहा।
•वे संघ और संगठन दोनों के स्वीकार्य चेहरे के तौर पर देखे गए।
3️⃣ 2024 – तीसरी बार सत्ता में वापसी, संगठन के लिए नया अध्याय
•2024 में भाजपा ने तीसरी बार केंद्र की सत्ता हासिल की।
•अब सवाल यह है कि पार्टी को 2029 तक नेतृत्व देने के लिए कौन अध्यक्ष बनेगा।
•नड्डा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और संगठन नए चेहरे की तलाश में है।
सत्ता का अनुभव बनाम संगठन की पकड़
अध्यक्ष पद की रेस में दो नाम सबसे आगे हैं –
•मनोहर लाल खट्टर: हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मोदी के सबसे करीबी सहयोगियों में शामिल। उन्हें प्रशासनिक अनुभव और सत्ता-संगठन का संतुलन साधने की क्षमता के लिए जाना जाता है।
•संजय जोशी: संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े वरिष्ठ संगठनकर्ता, जिनका सारा राजनीतिक जीवन कार्यकर्ताओं को जोड़ने और संगठन को मजबूत करने में बीता है। वे सत्ता से दूरी रखते हुए भी जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में अत्यंत लोकप्रिय हैं।
यहां सवाल यह है कि भाजपा किस दिशा में जाना चाहती है – क्या वह एक बार फिर सत्ता-प्रशासन के अनुभव वाले नेता पर भरोसा करेगी या फिर संगठनात्मक मजबूती को प्राथमिकता देगी?
संघ की भूमिका निर्णायक
भाजपा का इतिहास बताता है कि जब भी संगठनात्मक संकट या बड़ा बदलाव आया है, संघ की भूमिका निर्णायक रही है। आज भी नागपुर से लेकर दिल्ली तक चर्चाओं का दौर जारी है।
•संघ की राय यह है कि अध्यक्ष ऐसा हो जो कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भर सके और अगले पांच साल तक पार्टी को चुनावी मोड में रखे।
•दूसरी ओर सत्ता का पक्ष मानता है कि अध्यक्ष ऐसा होना चाहिए जो प्रशासन और संगठन के बीच तालमेल बिठाकर सरकार की नीतियों को जमीनी स्तर तक पहुँचा सके।
भाजपा की राजनीतिक चुनौती
भाजपा ने 2014, 2019 और 2024 में लगातार लोकसभा चुनाव जीते हैं। लेकिन अब उसकी असली चुनौती 2029 है, जब मोदी के बाद की नेतृत्व पंक्ति को आकार लेना होगा।
•अगर खट्टर अध्यक्ष बनते हैं तो यह संदेश जाएगा कि पार्टी सत्ता-संगठन के संतुलन वाले चेहरों पर ही भरोसा कर रही है।
•अगर संजय जोशी को मौका मिलता है तो यह संघ और संगठन का पलड़ा भारी होने का संकेत होगा, और साथ ही जमीनी कार्यकर्ताओं में एक नई ऊर्जा का संचार होगा।
संपादकीय दृष्टि से
भाजपा का यह चुनाव केवल एक पद भरने का मामला नहीं है। यह उस वैचारिक लड़ाई का हिस्सा है जिसमें पार्टी और संघ दोनों यह तय करेंगे कि आगे की राजनीति कौन तय करेगा – सत्ता का अनुभव रखने वाला चेहरा या संगठनात्मक गहराई से जुड़ा नेता।
खट्टर की नियुक्ति पार्टी में सत्ता-संगठन के संतुलन की रणनीति को मजबूत करेगी।
जबकि संजय जोशी की ताजपोशी यह संकेत होगी कि भाजपा अब अपनी जड़ों और संगठनात्मक ताकत पर लौट रही है।
भाजपा अध्यक्ष पद पर खींचतान वास्तव में सत्ता और संगठन की प्राथमिकताओं की टकराहट है। अब देखना यही है कि दिल्ली और नागपुर की संयुक्त रणनीति किस पर भरोसा जताती है – सत्ता-संगठन संतुलन वाले मनोहर लाल खट्टर पर या संगठनात्मक नायक संजय जोशी पर।
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