पटना/नई दिल्ली | विशेष रिपोर्ट — चुनाव आयोग ने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। बिहार से शुरू की गई विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR) न केवल फर्जी मतदाताओं को सूची से बाहर करेगी, बल्कि अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों की भी पहचान में मील का पत्थर साबित हो सकती है।
इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध और अद्यतन करना है, जिससे चुनावी पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके। चुनाव आयोग ने इसे देशभर में लागू करने की राज्यवार योजना तैयार की है। हालांकि यह प्रक्रिया कुछ विपक्षी दलों की आशंकाओं के चलते सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची, लेकिन 28 जुलाई की सुनवाई में हरी झंडी मिलने के बाद आयोग ने इसे पूरे भारत में लागू करने की तैयारी तेज कर दी है।
क्या है SIR और क्यों है अहम?
SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण, आयोग को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21 के तहत प्राप्त अधिकारों के अंतर्गत संचालित की जा रही है। इसका उद्देश्य फर्जी, मृत, दोहरी प्रविष्टियों और अयोग्य मतदाताओं को हटाना है। साथ ही, नए और पात्र मतदाताओं को शामिल किया जा रहा है।
आधार, ईपीआईसी (मतदाता पहचान पत्र) और राशन कार्ड जैसी वैकल्पिक पहचान के बावजूद, आयोग वैध दस्तावेजों के माध्यम से मतदाता की नागरिकता और पात्रता की पुष्टि कर रहा है।
विदेशी नागरिक कैसे आएंगे रडार पर?
यद्यपि SIR को एनआरसी (NRC) नहीं कहा जा सकता, फिर भी यह प्रक्रिया उन विदेशियों की पहचान में सहायक सिद्ध होगी, जो चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेकर उसे दूषित करने की कोशिश कर रहे हैं। आयोग की यह मंशा स्पष्ट है कि केवल भारत के नागरिकों को ही मतदान का अधिकार मिलना चाहिए, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 326 में वर्णित है।
कट-ऑफ डेट: नागरिकता के प्रमाण की नई कसौटी
बिहार के लिए 1 जनवरी 2003 को SIR की कट-ऑफ डेट तय की गई है। इससे पहले जिनका नाम मतदाता सूची में था, उन्हें स्वतः भारत का नागरिक मानकर सूची में शामिल कर लिया जाएगा। ऐसे लोगों से किसी भी प्रकार के दस्तावेज की मांग नहीं की जाएगी।
जबकि इस तिथि के बाद मतदाता बने व्यक्तियों से जन्म स्थान और जन्म तिथि के प्रमाण जैसे दस्तावेज मांगे जाएंगे। यह तरीका अन्य राज्यों जैसे दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पूरे भारत में भी अपनाया जाएगा, जहां SIR लागू किया जाएगा।
पूर्व अनुभव: 2003 में भी हो चुका है सफल प्रयोग
2003 में बिहार में हुई ऐसी ही एक प्रक्रिया के दौरान 31 दिनों में लगभग 3 करोड़ मतदाताओं की जांच की गई थी। अबकी बार इस प्रक्रिया में “विशेष” शब्द इसलिए जोड़ा गया है क्योंकि यह अब सघन, दस्तावेज-आधारित और तकनीकी रूप से सशक्त है।
चुनाव आयोग की स्पष्ट नीति: न पात्र को वंचित करेंगे, न अपात्र को शामिल
चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, यदि कोई वास्तविक मतदाता गलती से सूची से हटाया जाता है, तो उसे अपील का पूरा अवसर मिलेगा। ड्राफ्ट वोटर लिस्ट के प्रकाशन के बाद नागरिक अपने नाम की जांच और पुनर्सम्मिलन के लिए आवेदन कर सकेंगे। यदि गलती साबित होती है, तो वोटर लिस्ट में नाम फिर से जोड़ा जाएगा।
वोटर लिस्ट की प्रमुख समस्याएं और सुधार की आवश्यकता
देश के विभिन्न राज्यों से आयोग को डुप्लीकेट वोटिंग, मृत मतदाता, गलत पते और फर्जी दस्तावेजों जैसी समस्याएं मिली हैं। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर SIR लागू करने से यह उम्मीद है कि देश की मतदाता सूची न केवल पारदर्शी और अद्यतन होगी, बल्कि इससे अवैध विदेशी नागरिकों की भागीदारी भी रोकी जा सकेगी।
SIR प्रक्रिया चुनावी सुधार की ओर एक निर्णायक कदम
यह पहल भारत के लोकतंत्र को और अधिक पारदर्शी, सशक्त और सुरक्षित बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यदि यह पूरी सख्ती और निष्पक्षता से लागू की जाती है, तो देश की चुनावी व्यवस्था को फर्जीवाड़े से मुक्ति दिलाने में इसकी भूमिका निर्णायक हो सकती है।