बरेली/लखनऊ: बरेली और पिलिभीत रेलवे कॉलोनियों समेत कई परियोजनाओं में निर्माण कर रही अनिल एसोसिएट फर्म पर फर्जी दस्तावेज़ों के ज़रिए ठेके हथियाने का संगीन आरोप सामने आया है। फर्म पर एक करोड़ रुपये वार्षिक टर्नओवर के बावजूद पांच वर्षों में करीब 500 करोड़ रुपये के निर्माण कार्यों के टेंडर लेने का आरोप है।
यह पूरा मामला तब सामने आया जब शाहजहांपुर से भाजपा विधायक हरिशंकर वर्मा ने उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख सचिव को इस फर्म के खिलाफ गंभीर शिकायत की। उन्होंने बताया कि फर्म ने फर्जी बैलेंस शीट, अनुभव प्रमाण पत्र और टर्नओवर के दस्तावेज़ लगाकर सेतु निगम सहित विभिन्न विभागों से करोड़ों के ठेके हासिल किए।
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शासन के आदेश पर शुरू हुई जांच, मगर अधिकारियों ने की देरी
प्रमुख सचिव के आदेश पर पुलिस महानिदेशक (DGP) ने मामले की जांच कर रिपोर्ट मांगी। इसके बाद बरेली रेंज के आईजी विजय सिंह मीणा ने सीओ (क्षेत्राधिकारी) को दो दिन के भीतर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया, लेकिन हैरानी की बात यह है कि सीओ स्तर के अधिकारी ने जांच को दो महीने तक जानबूझकर लटकाए रखा।
इस लापरवाही से स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि इस फर्जीवाड़े में कुछ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत हो सकती है, या उन पर दबाव डाला गया।
सेतु निगम के अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका
सूत्रों के अनुसार, अनिल एसोसिएट को जो ठेके मिले, उनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश सेतु निगम लिमिटेड की विभिन्न परियोजनाओं से संबंधित हैं। आरोप है कि सेतु निगम के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने जानबूझकर फर्म की फर्जी दस्तावेज़ों को वैध मानते हुए उसे योग्य ठहराया और लाखों-करोड़ों के ठेके आवंटित कर दिए।
एक ओर जहां फर्म का वास्तविक वार्षिक टर्नओवर सिर्फ एक करोड़ था, वहीं उसे 500 करोड़ रुपये से अधिक के ठेके कैसे और किन प्रक्रियाओं से मिले — यह बड़ा सवाल बनकर सामने खड़ा है।
इस बात की भी जांच की जा रही है कि फर्म ने जिन संस्थाओं और कंपनियों के नाम पर अनुभव दर्शाया, उनमें से कई पहले से ही ब्लैकलिस्टेड थीं, फिर भी इनका हवाला देकर पास होना नियमों की खुली अवहेलना है।
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विधायक की सीधी शिकायत ने खोली पोल
भाजपा विधायक हरिशंकर वर्मा ने प्रमुख सचिव से शिकायत में कहा था कि,
“शाहजहांपुर की अल्लापुर विधानसभा में इस फर्म ने बहुत घटिया निर्माण कार्य किया है। इतनी बड़ी परियोजनाएं इस कंपनी को क्यों और कैसे दी गईं, इसकी जांच होनी चाहिए।”
उनकी शिकायत पर शासन ने गंभीरता दिखाई और तत्काल राज्य स्तरीय जांच के आदेश जारी कर दिए।
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आगे क्या?
🔹 शासन ने अब मुख्य सचिव स्तर पर विशेष जांच समिति गठित करने की तैयारी की है।
🔹 सेतु निगम के कुछ अधिकारियों को नोटिस भेजने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
🔹 यदि आरोप सही पाए गए तो अनिल एसोसिएट के खिलाफ FIR दर्ज हो सकती है, साथ ही सरकारी टेंडरों में भविष्य की भागीदारी पर रोक लग सकती है।
🔹 इससे जुड़े राजपत्रित अधिकारियों पर भी विभागीय कार्रवाई की संभावना है।
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अनिल एसोसिएट प्रकरण अकेले एक फर्म का घोटाला नहीं, यह प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्टाचार और मिलीभगत की चौंकाने वाली तस्वीर है। यदि 1 करोड़ टर्नओवर वाली कंपनी को 500 करोड़ के काम मिलते हैं और कोई सवाल नहीं उठता, तो यह न सिर्फ सरकारी व्यवस्था की विफलता है बल्कि आम जनता के पैसों से हो रहे भ्रष्टाचार की खुली लूट भी है।