देश में इस बार जून महीने में बिजली की खपत में 1.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। जहां एक ओर मई में रिकॉर्डतोड़ गर्मी से बिजली की खपत और मांग चरम पर थी, वहीं जून में मौसम के बदलते मिजाज और समय से पहले आए मानसून ने बिजली की मांग को काफी हद तक ठंडा कर दिया।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जून 2024 में देश की कुल बिजली खपत 150.04 बिलियन यूनिट (BU) रही, जो पिछले साल जून में दर्ज 152.37 BU से कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि तेज़ बारिश और तापमान में गिरावट की वजह से कूलिंग उपकरणों — जैसे एयर कंडीशनर और डेजर्ट कूलर — के इस्तेमाल में गिरावट आई, जिससे बिजली की मांग पर सीधा असर पड़ा।
पीक डिमांड में भी आई गिरावट
जून महीने में एक दिन में सबसे अधिक बिजली की मांग (पीक पावर डिमांड) घटकर 242.49 गीगावाट पर आ गई, जबकि पिछले वर्ष जून में यह आंकड़ा 244.52 गीगावाट तक पहुंचा था। तुलना करें तो मई 2024 में यह मांग 250 गीगावाट के सर्वकालिक उच्चतम स्तर तक पहुंच गई थी।
सितंबर 2023 में भी एक रिकॉर्ड स्तर दर्ज किया गया था, जब पीक डिमांड 243.27 गीगावाट थी। सरकारी अनुमान बता रहे हैं कि आने वाली गर्मियों, यानी 2025 में यह डिमांड 277 गीगावाट तक पहुंच सकती है।
8 दिन पहले पहुंचा मानसून, मौसम ने बदला खेल
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की रिपोर्ट के अनुसार, इस बार मानसून अपने निर्धारित समय से करीब 8 दिन पहले, 24 मई को ही केरल तट पर पहुंच गया था। इसके बाद दिल्ली सहित कई राज्यों में मानसून समय से पहले ही दस्तक दे गया, जिससे तापमान में गिरावट आई और हवा में नमी बढ़ गई।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस वर्ष अप्रैल-जून के बीच सामान्य से अधिक गर्मी की संभावना जताई गई थी, लेकिन मानसूनी वर्षा ने वातावरण को अपेक्षाकृत ठंडा और नम बना दिया, जिससे हीटवेव की तीव्रता भी कम रही और नतीजतन बिजली की खपत घट गई।
गर्मी का असर इस बार जल्दी दिखा, फिर मानसून ने किया ठंडा
पिछले साल की तुलना में इस वर्ष हीटवेव की शुरुआत भी जल्दी हो गई थी। 2024 में जहां ओडिशा में पहली गर्मी की लहर 5 अप्रैल को आई थी, वहीं इस बार 27-28 फरवरी को ही कोंकण और तटीय कर्नाटक में गर्मी ने असर दिखाना शुरू कर दिया था। हालांकि, जल्दी आए मानसून ने इस बढ़ती गर्मी को थाम लिया।
जल्दी आए मानसून और अनिश्चित मौसमीय बदलावों ने इस बार बिजली की खपत और मांग पर सीधा असर डाला है। जहां एक ओर इससे राहत जरूर मिली है, वहीं भविष्य के लिए ऊर्जा प्रबंधन और पूर्वानुमान को लेकर नई रणनीतियों की जरूरत भी साफ झलक रही है।