मुंबई, 1 जुलाई 2025 — महाराष्ट्र सरकार द्वारा कक्षा 1 से हिंदी भाषा को अनिवार्य करने वाले दोनों सरकारी आदेश (GR) वापस लिए जाने के बाद राज्य की राजनीति में बड़ा मोड़ आ गया है। शिवसेना (ठाकरे गुट) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने इस फैसले को “मराठी स्वाभिमान की जीत” करार देते हुए 5 जुलाई को प्रस्तावित विरोध मार्च को अब ‘विजय मार्च’ में बदलने की घोषणा की है।
ठाकरे ने इस आंदोलन को भाषा विरोध नहीं, बल्कि थोपे गए फैसलों के खिलाफ लोकतांत्रिक संघर्ष बताया और राज ठाकरे सहित सभी मराठी संगठनों को इस ‘विजय जुलूस’ में शामिल होने का न्योता भी दिया है।
सरकार को झुकना पड़ा, दो GR रद्द
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत सरकार ने त्रिभाषा नीति लागू करते हुए कक्षा 1 से हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने की घोषणा की थी। इसके खिलाफ शिवसेना (ठाकरे गुट), मनसे, कांग्रेस, और विभिन्न मराठी संगठनों ने तीव्र विरोध दर्ज कराया। सार्वजनिक आक्रोश और राजनीतिक दबाव के चलते राज्य सरकार ने दोनों GR रद्द कर दिए हैं, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि जबरदस्ती थोपे गए निर्णय जनस्वीकृति के बिना सफल नहीं हो सकते।
उद्धव ठाकरे का सरकार पर तीखा प्रहार
उद्धव ठाकरे ने कहा, “यह आंदोलन भाषा के खिलाफ नहीं, बल्कि जबरदस्ती के खिलाफ था। भाजपा का असली एजेंडा मराठी और अमराठी समाज के बीच विभाजन पैदा कर अमराठी वोट बैंक को साधने का था, लेकिन मराठी जनता ने एकजुट होकर इस साजिश को नाकाम कर दिया।”
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को लगा था कि भाषा के नाम पर समाज विभाजित किया जा सकता है, लेकिन यह प्रयोग बुरी तरह विफल रहा।
अब ‘विजय मार्च’, न कि विरोध
फडणवीस सरकार द्वारा GR वापसी के बाद 5 जुलाई के कार्यक्रम को लेकर संदेह बना हुआ था, लेकिन उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट किया कि मार्च तयशुदा रहेगा, अब वह विरोध नहीं बल्कि जीत का उत्सव और जनसभा का रूप लेगा।
“हम यह विजय मार्च इसलिए निकाल रहे हैं क्योंकि हमने सरकार की भाषा-थोपने की मंशा को पराजित किया है।” — उद्धव ठाकरे
राज ठाकरे को आमंत्रण, मराठी एकता का संदेश
ठाकरे ने कहा कि अभी भले ही राज ठाकरे से उनकी व्यक्तिगत बातचीत नहीं हुई हो, लेकिन पार्टी स्तर पर संवाद जारी है। उन्होंने एमएनएस और सभी मराठी समर्थक संगठनों से 5 जुलाई के कार्यक्रम में भाग लेने का आग्रह किया।
“हमें मराठी एकता को बिखरने नहीं देना है। यह सिर्फ एक जीत का उत्सव नहीं, बल्कि हमारी एकता का प्रतीक है। हमें हर बार संकट का इंतज़ार नहीं करना चाहिए, बल्कि सजग और संगठित रहना चाहिए।” — उद्धव ठाकरे
समिति गठन पर भी उठाए सवाल
सरकार द्वारा त्रिभाषा नीति के भविष्य के कार्यान्वयन के लिए शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में समिति बनाए जाने की घोषणा भी कटघरे में है। उद्धव ठाकरे ने कहा, “कोई भी समिति बना ली जाए, लेकिन अब भाषा थोपने की कोई बाध्यता नहीं रही। मराठी समाज अब सतर्क और एकजुट है।”
निष्कर्ष: विजय का उत्सव, एकता का संकल्प
5 जुलाई को होने वाला यह ‘विजय मार्च’ अब सिर्फ हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ नहीं, बल्कि मराठी अस्मिता, सांस्कृतिक अधिकारों और जनतंत्र के प्रति जागरूकता का प्रतीक बन चुका है। उद्धव ठाकरे के इस आह्वान ने न केवल शिवसेना और मनसे को एक मंच पर लाने की संभावना पैदा की है, बल्कि मराठी समाज की सामूहिक चेतना को भी एक नई दिशा दी है।