लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासत में 2027 विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी हलचल शुरू हो गई है। एक ओर जहां बीजेपी सत्ता की हैट्रिक लगाकर इतिहास रचने की तैयारी में है, वहीं सपा ‘पीडीए’ फॉर्मूले के सहारे वापसी को बेताब है। इसी बीच पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने तीसरे मोर्चे के गठन का ऐलान कर दिया है, जिसका नाम है ‘लोक मोर्चा’। इसका औपचारिक ऐलान गुरुवार को लखनऊ में किया जाएगा।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर यह नया फ्रंट बनाया है और खुद को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर चुके हैं।
यूपी की राजनीति में नई सियासी बिसात
स्वामी प्रसाद मौर्य लखनऊ के दयाल पैराडाइज होटल में कई छोटे दलों के साथ लगातार बैठकें कर रहे हैं। इन बैठकों के बाद वह मीडिया के सामने लोक मोर्चा की संरचना, एजेंडा और साझेदार दलों की घोषणा करेंगे।
उनके निजी सचिव सज्जाद अली के मुताबिक, सभी दलों की सर्वसम्मति से स्वामी प्रसाद मौर्य को 2027 विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया है।
“हम सिर्फ विधानसभा ही नहीं, बल्कि पंचायत चुनावों में भी पूरी ताकत के साथ उतरेंगे। जमीनी पकड़ मजबूत करके ही विधानसभा की लड़ाई लड़ी जाएगी,” – स्वामी प्रसाद मौर्य
क्या स्वामी प्रसाद मौर्य दो ध्रुवीय सियासत में तीसरा विकल्प बन पाएंगे?
स्वामी प्रसाद मौर्य लंबे समय से यूपी की राजनीति का जाना-पहचाना चेहरा हैं। उन्होंने जनता दल, बसपा, भाजपा और समाजवादी पार्टी में अहम भूमिकाएं निभाईं। वह पांच बार विधायक और चार बार मंत्री रह चुके हैं। ओबीसी समाज, खासकर मौर्य, कुशवाहा, सैनी और शाक्य समुदाय में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती रही है।
हालांकि बीते कुछ वर्षों में उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई है। जिस समाज में उनकी पकड़ मानी जाती थी, वहां अब केशव प्रसाद मौर्य (भाजपा) और अन्य नेता मजबूत हुए हैं। इसके अलावा 2024 लोकसभा चुनाव में भी मौर्य का समाज सपा के साथ खड़ा नजर आया, जिससे उनकी पकड़ और ढीली हुई है।
क्या चंद्रशेखर आजाद होंगे साथ?
कुछ दिन पहले स्वामी प्रसाद मौर्य की मुलाकात नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद से हुई थी। अटकलें हैं कि चंद्रशेखर आजाद भी लोक मोर्चा में शामिल हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो यह मोर्चा दलित-ओबीसी गठजोड़ के रूप में सशक्त विकल्प बन सकता है।
चुनाव 2027: मोर्चेबंदी शुरू
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बीजेपी चाहती है 2027 में सत्ता की तीसरी बार वापसी।
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सपा ‘पीडीए’ फार्मूले से संघर्ष में वापसी की कोशिश कर रही है।
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अब तीसरे फ्रंट के रूप में लोक मोर्चा चुनावी मुकाबले में अपनी दावेदारी पेश कर रहा है।
लेकिन सवाल यही है — क्या ये तीसरा मोर्चा वाकई वोटरों को आकर्षित कर पाएगा या फिर अन्य छोटे मोर्चों की तरह सीमित प्रभाव ही छोड़ पाएगा?
राजनीतिक विश्लेषण: तीसरे मोर्चे की चुनौतियां
उत्तर प्रदेश में पिछले दो विधानसभा चुनावों से राजनीति लगभग दो ध्रुवों में बंटी रही है — एक तरफ भाजपा, दूसरी तरफ सपा-गठबंधन। ऐसे में तीसरे मोर्चे को न सिर्फ जनाधार बनाना होगा, बल्कि स्थायी संगठन, स्पष्ट एजेंडा और विश्वसनीय चेहरे भी पेश करने होंगे।
स्वामी प्रसाद मौर्य के पास राजनीतिक अनुभव है, लेकिन क्या उनके साथ जुड़े छोटे दल इतना जनाधार जुटा पाएंगे कि वे सत्ता की लड़ाई में असली दावेदार बनें?